सरकारी कर्मचारी घोषित करने व अन्य मांगों को लेकर दुर्ग में जुटी जिले भर की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं

सरकारी कर्मचारी घोषित करने व अन्य मांगों को लेकर दुर्ग में जुटी जिले भर की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं

भिलाई :  महिला एवं बाल विकास विभाग में सामान्य मानदेय पर सेवा दे रही आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं ने एक बार फिर आंदोलन का शंखनाद कर दिया है। अपने को सरकारी कर्मचारी घोषित करने सहित अन्य मांगों को लेकर आज छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता – सहायिका कल्याण संघ के बैनर तले एक दिवसीय ध्यानाकर्षण धरना प्रदर्शन किया गया। दुर्ग शहर के हिंदी भवन के सामने आयोजित इस धरना प्रदर्शन में पूरे जिले की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं ने हिस्सा लेकर आवाज बुलंद की।

छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता – सहायिका कल्याण संघ ने सरकार को स्पष्ट चेतावनी दे दी है कि अगर लंबित मांगों पर तुरंत कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन की रफ्तार और तेज होगी। प्रदेश व्यापी आव्हान पर आज 13 अगस्त को जिला मुख्यालय दुर्ग में एक दिवसीय ध्यानाकर्षण धरना प्रदर्शन आयोजित किया गया। इस धरने की औपचारिक सूचना सक्षम अधिकारियों को पूर्व में ही संघ की ओर दे दी गई थी। कार्यकर्ता और सहायिकाओं के धरना प्रदर्शन में शामिल होने से आज आंगनबाड़ी केंद्रों में ताला लटकता रहा।

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छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता – सहायिका कल्याण संघ की जिला अध्यक्ष श्रीमती गीता बाग ने कहा कि वर्षों से बार-बार सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग रखने के बावजूद सरकार की ओर से सकारात्मक पहल नहीं हो रही, जिससे हजारों कार्यकर्ता और सहायिकाएं नाराज हैं। सरकारी कर्मचारी घोषित करने की प्रक्रिया से पहले मध्यप्रदेश सरकार की तर्ज पर मानदेय में प्रत्येक वर्ष दस प्रतिशत की वृद्धि होनी चाहिए। संघ ने यह भी आरोप लगाया कि पोषण ट्रैकर ऐप की समस्याओं पर कईं बार लिखित व मौखिक शिकायत दी गई, लेकिन समाधान नहीं हुआ। इस एक दिवसीय प्रदर्शन के माध्यम से कार्यकर्ता सरकार और प्रशासन को अंतिम चेतावनी देना चाहती हैं। अगर इसके बाद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो आंदोलन को जिला व प्रदेश स्तर पर और व्यापक बनाया जाएगा।

अन्य महत्वपूर्ण मांगों में पर्यवेक्षक भर्ती तुरंत निकाली जाए, आयु सीमा बंधन हटाया जाए, 50 प्रतिशत पदों पर पदोन्नति दी जाए, सहायिकाओं को 100 प्रतिशत पदोन्नति का अवसर मिले और सभी बंधन खत्म हों। वक्ताओं ने कहा कि बार-बार ऐप वर्जन बदलने से काम में रुकावट, मोबाइल न होने से नया वर्जन सपोर्ट न करना, सरकार मोबाइल उपलब्ध कराए और नेट खर्च बढ़ाए। इसके अलावा नए वर्जन का प्रशिक्षण न मिलना, हितग्राहियों के आधार कार्ड अपलोड न होना, कईं हितग्राही ओटीपी बताने से मना करते हैं, जिससे बैंक खातों से पैसे निकलने की घटनाएं आदि प्रमुख है।

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