भाद्रपद मास का पहला प्रदोष व्रत कब है?  जानिए पूजन विधि और महत्व...

भाद्रपद मास का पहला प्रदोष व्रत कब है? जानिए पूजन विधि और महत्व...

हिंदू धर्म में, भगवान शिव की पूजा के लिए प्रदोष व्रत को बहुत ही खास माना जाता है. यह व्रत हर महीने में दो बार, त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. एक कृष्ण पक्ष में और दूसरा शुक्ल पक्ष में. इन दोनों ही व्रतों का विशेष महत्व होता है और भक्तजन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ पूजा-अर्चना करते हैं. अब जब भाद्रपद का महीना शुरू हो चुका है, तो इस माह का पहला प्रदोष व्रत कब है, आइए जानते हैं.

भाद्रपद मास का पहला प्रदोष व्रत कब है:- भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 20 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 58 मिनट पर होगी, जिसका समापन अगले दिन 21 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 44 मिनट पर होगा. होगा. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार भाद्रपद का पहला प्रदोष व्रत 20 अगस्त को रखा जाएगा.

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प्रदोष काल का महत्व:- प्रदोष व्रत में प्रदोष काल में ही पूजा करने का विधान है. यह काल सूर्यास्त के ठीक बाद का समय होता है. ऐसी मान्यता है कि इस समय भगवान शिव बहुत ही प्रसन्न मुद्रा में होते हैं और उनकी पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस शुभ मुहूर्त में व्रत रखने और पूजा करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है.

प्रदोष व्रत की पूजन विधि:- व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें. पूजा से पहले हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें और मन ही मन भगवान शिव का ध्यान करें. पूजा के लिए एक साफ-सुथरा स्थान चुनें. भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग को स्थापित करें. पूजा में बेलपत्र, धतूरा, आक के फूल, गंगाजल, गाय का दूध, दही, शहद, घी, शक्कर और चंदन का उपयोग करें. प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा शुरू करें. सबसे पहले शिव जी का अभिषेक करें. इसके बाद उन्हें बेलपत्र, फूल और फल अर्पित करें. पूजा के दौरान ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें और प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें. पूजा के आखिर में भगवान शिव की आरती करें और सभी को प्रसाद बांटें.

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प्रदोष व्रत का महत्व:- प्रदोष व्रत को बेहद फलदायी माना जाता है. इस व्रत को करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति इस व्रत को सच्ची श्रद्धा से रखता है, उसे भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को रोग, दोष और कष्टों से मुक्ति मिलती है. साथ ही, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है.








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