किसानों की आय और देश के खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी करने के उद्देश्य कृषि वैज्ञानिकों की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं। कृषि वैज्ञानिक नई–नई अधिक पैदावार देने वाली व रोग प्रतिरोधी किस्मों को विकसित कर रहे हैं। इसी कड़ी में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU), हिसार ने किसानों को बड़ी खुशखबरी दी है। विश्वविद्यालय ने ज्वार, बाजरा, काबुली चना और मसूर जैसी प्रमुख फसलों की 5 नई उन्नत किस्में विकसित की हैं, जो अधिक उपज देने के साथ-साथ रोगों के प्रति सहनशील भी हैं।
आइए जानते हैं, कौन सी है ये किस्में और इनमें कितना मिल सकता है फायदा।
कौनसी हैं ये नई उन्नत किस्में
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से बाजरा की बायोफोर्टिफाइड किस्म एचएचबी-299 तैयार की गई है। यह किस्म लौह तत्व (Iron) से भरपूर–73 PPM युक्त है। बाजरा की यह किस्म 75–81 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म की उपज क्षमता 49 क्विंटल/हेक्टेयर तक बताई जा रही है। यह किस्म हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु के लिए उपयुक्त है। बाजरा की यह किस्म रोग प्रतिरोधक क्षमता और कम समय में अधिक उत्पादन के लिए जानी जाती है।
ये भी पढ़े : मुखिया के मुखारी - हम आपके हैं कौन बनते
चारा ज्वार CSV 53 F किस्म
CSV 53 F ज्वार की एक एकल कटाई वाली चारा किस्म है। इस किस्म से करीब 482.81 क्विंटल/हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। वहीं इस किस्म से 152.67 क्विंटल/हेक्टेयर तक सूखा चारा मिल सकता है। इस किस्म से 13.39 क्विंटल/हेक्टेयर तक बीजों का उत्पादन मिल सकता है। ज्वार चारे की यह किस्म पूरे देश में चारा ज्वार उत्पादक क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
चारा ज्वार CSV 64 F किस्म
ज्वार की CSV 64 F चारा किस्म की उत्तर भारत के लिए सिफारिश की गई है। इस किस्म से 466.3 क्विंटल/हेक्टेयर हरा चारा और 121.8 क्विंटल/हेक्टेयर सूखा चारा मिल सकता है। वहीं ज्वार की इस किस्म से करीब 15.2 क्विंटल/हेक्टेयर तक बीज उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
हरियाणा काबुली चना HK 5 किस्म
काबुली चने की यह किस्म जल्दी पकने वाली और उखैड़ा रोग के प्रति सहनशील है। इस किस्म से औसत उपज 24.55 क्विंटल/हेक्टेयर मिल सकती है। काबुली चने की यह किस्म बुवाई के 151 दिनों में तैयार हो जाती है। यह किस्म हरियाणा राज्य के लिए उपयुक्त बताई गई है।
मसूर LH 17-19 किस्म
मसूर LH 17-19 किस्म यह किस्म रतुआ और उखेड़ा रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्म है। इस किस्म से औसत उपज 15–16 क्विंटल/हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है। यह किस्म 130–135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। यह उत्तर भारत के लिए उपयुक्त बताई गई है।
पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप से किसानों को मिलेगा फायदा
एचएयू का कहना है कि इन उन्नत किस्मों को किसानों तक पहुंचाने के लिए PPP मॉडल के तहत प्राइवेट कंपनियों के साथ साझेदारी की जा रही है। इससे बीजों का बड़े पैमाने पर उत्पादन और वितरण संभव होगा। स्टार एग्रीसीड्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ हुआ यह समझौता बीज आपूर्ति को मजबूत बनाएगा और बीज की गुणवत्ता सुनिश्चित करेगा। बता दें कि यह कदम देश में फसल उत्पादकता बढ़ाने और किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी करने की दिशा में बड़ा बदलाव ला सकता है। एचएयू ने इन उन्नत किस्मों को किसानों तक पहुंचाने के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) के तहत स्टार एग्रीसीड्स प्राइवेट लिमिटेड, संगरिया (हनुमानगढ़, राजस्थान) के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस साझेदारी से न केवल हरियाणा बल्कि राजस्थान सहित अन्य राज्यों के किसान भी लाभान्वित होंगे।
ये भी पढ़े : नगर सैनिकों की भर्ती के सम्बन्ध में परिणाम जारी
नई किस्में अपनाने से किसानों को क्या होगा लाभ
इन किस्मों की बुवाई करते समय इन बातों का रखें ध्यान
किसान के लिए वरदान साबित हो सकती हैं ये उन्नत किस्में
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित ये उन्नत किस्में देशभर के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती हैं। खासकर वे किसान जो कम लागत में अधिक उपज और रोगों से सुरक्षा चाहते हैं, उनके लिए ये किस्में आदर्श हैं। PPP मॉडल के माध्यम से इन किस्मों की पहुंच बढ़ेगी और खेती में तकनीकी सुधार को बल मिलेगा।
Comments