भारत में ऐसे कई मंदिर हैं, जो न केवल आस्था का केंद्र हैं, बल्कि अपने अद्भुत इतिहास और परंपराओं के लिए भी जाने जाते हैं। छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के नारायणपुर गांव में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर भी ऐसा ही स्थान है।इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां भाई-बहन को एक साथ दर्शन करने की मनाही है। यह परंपरा केवल धार्मिक आस्था से नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक घटना से जुड़ी हुई है।
मंदिर से जुड़ी कहानी
ग्रामीणों और बुजुर्गों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण एक जनजातीय कारीगर, नारायण, द्वारा किया गया था। यह निर्माण कार्य मुख्य रूप से रात के समय गुप्त रूप से किया जाता था, और निर्माण के दौरान वह निर्वस्त्र रहकर शिल्पकारी करता था। उसकी पत्नी हर रात उसे भोजन देने आती थी।
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लेकिन एक दिन, किसी कारणवश उसकी पत्नी के स्थान पर उसकी बहन भोजन लेकर पहुंच गई। बहन को देखकर नारायण शर्म से भर गया और इतना व्यथित हुआ कि उसने मंदिर के कंगूरे से कूदकर अपनी जान दे दी। इस घटना के बाद से यह मान्यता बन गई कि अगर कोई भाई-बहन इस मंदिर में एक साथ दर्शन करेंगे, तो उनके साथ कोई अनहोनी हो सकती है।
परंपरा और आस्था
गांववाले इस परंपरा को आज भी पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ निभाते हैं। यह मान्यता पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और इसे ग्रामीणों द्वारा पूर्वजों के अनुभव और आस्था का प्रतीक माना जाता है।
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मंदिर की वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व
माना जाता है कि यह मंदिर 10वीं शताब्दी में कलचुरी वंश के राजाओं द्वारा बनवाया गया था। यह पूर्वाभिमुखी (पूर्व दिशा की ओर मुख वाला) शिव मंदिर है, जो लाल और काले बलुआ पत्थरों से निर्मित है। मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी और मूर्तियां उस समय की अद्भुत शिल्पकला को दर्शाती हैं।
मंदिर में उकेरी गई विचित्र मूर्तियां भी इस परंपरा के पीछे का एक कारण बताई जाती हैं। इतिहासकारों का कहना है कि ये मूर्तियां उस समय की संस्कृति और समाज का प्रतीक हैं। मंदिर के निर्माण में उन्नत वास्तुकला और बारीकी से की गई नक्काशी यह दर्शाती है कि यह कला और स्थापत्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
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