महासमुंद : एक ओर जहां छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भ्रष्टाचार पर 'जीरो टॉलरेंस' की नीति अपनाते हुए जनता को एक पारदर्शी, जवाबदेह और ईमानदार प्रशासन देने का वादा कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर महासमुंद जिले में उनके इस वादे को राजस्व विभाग के अधिकारी ही पलीता लगाते नजर आ रहे हैं। सरायपाली तहसील के ग्राम पैकिन में सरकारी मद में दर्ज बेशकीमती भूमि की अवैध बिक्री का एक बड़ा मामला सामने आया है जिसमें पटवारी, तहसीलदार और उप-पंजीयक की भूमिका सवालों के घेरे में है।
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दस्तावेजों में 'बड़ेझाड़ का जंगल', हकीकत में हो गई रजिस्ट्री
मामला सरायपाली तहसील के अंतर्गत आने वाले ग्राम पैकिन की उस भूमि से जुड़ा है, जिसका पुराना खसरा नंबर 700/4 (नया नंबर 606) और 700/3 (नया नंबर 610) है। शासकीय दस्तावेजों की पड़ताल करने पर यह स्पष्ट होता है कि यह भूमि शासकीय संरक्षण की श्रेणी में आती है। वर्ष 1929-30 के मिसल बंदोबस्त अभिलेख में यह भूमि 'बड़ेझाड़ का जंगल' के रूप में दर्ज है। इसके बाद, वर्ष 1955-56 के अधिकार अभिलेख में भी इसे 'अमराई बाग, बड़ेझाड़ का जंगल' मद में वर्गीकृत किया गया है। यह वर्गीकरण चीख-चीख कर गवाही दे रहा है कि यह भूमि निजी नहीं है और इसकी खरीदी-बिक्री सामान्य तरीके से नहीं की जा सकती।
नियमों को ताक पर रखकर हुआ सौदा
छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता के नियमों के अनुसार, इस प्रकार की शासकीय या जंगल-झाड़ी मद की भूमि की बिक्री या हस्तांतरण के लिए कलेक्टर की पूर्वानुमति अनिवार्य है। लेकिन इस मामले में सभी नियमों को ताक पर रख दिया गया। सूत्रों के अनुसार, खसरा नंबर 610 को सौहाद्र नामक व्यक्ति और खसरा नंबर 606 को शंकर नामक व्यक्ति द्वारा ग्राम परसदा निवासी पूर्णोबाई पटेल पति लखनलाल पटेल को बेच दिया गया। इस पूरी प्रक्रिया में न तो कलेक्टर से कोई अनुमति ली गई और न ही भूमि के शासकीय स्वरूप का ध्यान रखा गया।
पटवारी से तहसीलदार तक, सबकी भूमिका संदिग्ध
यह पूरा फर्जीवाड़ा राजस्व विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है। इस अवैध सौदे में हर स्तर पर जिम्मेदारों की भूमिका अत्यंत संदिग्ध है
पटवारी की भूमिका
किसी भी भूमि की खरीदी-बिक्री से पहले पटवारी द्वारा एक विस्तृत प्रतिवेदन तैयार किया जाता है। सवाल उठता है कि पटवारी ने जानबूझकर इस तथ्य को कैसे नजरअंदाज कर दिया कि यह भूमि 'बड़ेझाड़ का जंगल' मद में दर्ज है उन्होंने अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख क्यों नहीं किया?
तहसीलदार की भूमिका
नामांतरण की प्रक्रिया तहसीलदार के स्तर पर होती है। तहसीलदार ने बिना दस्तावेजों की गहन जांच किए और कलेक्टर की अनुमति के बिना इस सौदे को कैसे आगे बढ़ने दिया? यह उनकी कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।
उप-पंजीयक की भूमिका
रजिस्ट्री कार्यालय में जब भूमि की रजिस्ट्री की जाती है, तो उप-पंजीयक का यह कर्तव्य है कि वह भूमि के प्रकार और उससे जुड़े प्रतिबंधों की जांच करे। सरकारी जंगल की भूमि की रजिस्ट्री बिना सक्षम अधिकारी की अनुमति के करना एक गंभीर अपराध है, जिसे यहां अंजाम दिया गया।
मुख्यमंत्री की जीरो टॉलरेंस नीति के लिए एक चुनौती
यह मामला मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के लिए एक सीधी चुनौती है। एक तरफ सरकार पारदर्शी प्रशासन की बात कर रही है वहीं दूसरी तरफ निचले स्तर पर अधिकारी सरकारी संपत्तियों को खुर्द-बुर्द करने में लगे हैं।
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ग्रामीणों की मांग
स्थानीय लोगों और युवा लिंगराज दास , हरिमोहन तिवारी ने इस मामले की उच्च-स्तरीय जांच की मांग की है। उनकी मांग है कि इस अवैध बिक्री को तत्काल निरस्त किया जाए और इस फर्जीवाड़े में शामिल विक्रेता, क्रेता के साथ-साथ दोषी पटवारी तहसीलदार और उप-पंजीयक के खिलाफ कठोर आपराधिक कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में कोई भी सरकारी संपत्ति के साथ इस तरह का खिलवाड़ करने की हिम्मत न कर सके। अब देखना यह होगा कि मुख्यमंत्री के 'ईमानदार प्रशासन' के दावे पर यह मामला कितना खरा उतरता है।
मिसल रिकॉर्ड में भू स्वामी है, जिसके आधार पर जमीन की प्रमाणीकरण हुआ है आगे कोई त्रुटि है तो जांच किया जाएगा
हरि प्रसाद भोई
नायब तहसीलदार
सरायपाली
ग्राम पैकिन में शासकीय भूमि में अतिक्रमण को लेकर शिकायत प्राप्त हुई है, जिसके आधार पर जांच के उपरांत दोषियों पर विधिवत कार्यवाही किया जाएगा
मनीषा देवांगन
अतिरिक्त तहसीलदार
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