गणेशोत्सव के श्रीगणेश की कहानी - कैसे शुरू हुई जानें इतिहास

गणेशोत्सव के श्रीगणेश की कहानी - कैसे शुरू हुई जानें इतिहास

 गणेश उत्सव केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धड़कन है। इस महापर्व की शुरुआत महाराष्ट्र से हुई और धीरे-धीरे यह पूरे देश में भक्ति, उत्साह और सामाजिक एकता का प्रतीक बन गया। प्राचीन काल से लेकर स्वतंत्रता आंदोलन और आज के आधुनिक युग तक, गणेश उत्सव ने हमेशा जन-जन को जोड़ा है।यह पर्व न केवल भगवान गणेश की आराधना का अवसर देता है, बल्कि हमें हमारी सनातन परंपरा, सामूहिक शक्ति और सामाजिक एकता की याद भी दिलाता है।

गणेश उत्सव की शुरुआत

गणेश उत्सव का इतिहास महाराष्ट्र से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि मराठा साम्राज्य के वीर सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी माता जीजाबाई के साथ मिलकर गणेश चतुर्थी का शुभारंभ किया था। उस समय मुगल शासन के दौर में जब हिंदू धर्म और परंपराओं पर संकट मंडरा रहा था, तब इस महोत्सव ने सनातन संस्कृति की रक्षा और जन-जन को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया।

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शिवाजी महाराज के बाद मराठा पेशवाओं ने भी इसे बड़े भव्य रूप में मनाना शुरू किया। गणेश चतुर्थी के दिनों में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता था और दान-पुण्य के कार्य किए जाते थे। इस प्रकार गणेश उत्सव न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक बना।

ब्रिटिश शासन और गणेश उत्सव का पुनर्जागरण

ब्रिटिश शासन के समय जब हिंदू पर्वों और सार्वजनिक आयोजनों पर रोक लगाने की कोशिश की गई, तब लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव को नई दिशा दी। उन्होंने इसे केवल धार्मिक उत्सव न बनाकर, जन-जन की एकता और स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बना दिया। समाज को संगठित करने और विदेशी शासन के विरुद्ध चेतना जगाने का यह सशक्त माध्यम बना।

वर्ष 1892 में पुणे के भाऊसाहेब जावळे ने पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेश मूर्ति की स्थापना कर इस परंपरा को स्थायी और जीवंत रूप प्रदान किया।

आधुनिक समय में गणेश उत्सव

आज गणेश उत्सव केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे भारत और विदेशों में भी बड़े उत्साह से मनाया जाता है। घर-घर में गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती है और सार्वजनिक पंडालों में भव्य सजावट के साथ श्री गणेश विराजमान होते हैं।

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इस पर्व का स्वरूप भी समय के साथ बदलता गया है। अब इसमें सामाजिक सेवा, सांस्कृतिक कार्यक्रम, पर्यावरण-सुरक्षा और लोकजागरूकता जैसे कार्य भी जुड़ गए हैं। कई जगह इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं का प्रचलन बढ़ा है, जिससे यह महोत्सव भक्ति और जिम्मेदारी दोनों का संदेश देता है।








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