नई दिल्ली : ‘द ताशकंद फाइल्स’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बाद यह ट्रायोलाजी अब ‘द बंगाल फाइल्स’ के साथ पूरी हो रही है। पांच सितंबर को प्रदर्शित होने वाली इस फिल्म में भी मिथुन चक्रवर्ती अहम भूमिका में होंगे। यह विभाजन से पहले कोलकाता में हुए सांप्रदायिक दंगों पर आधारित फिल्म है। मिथुन से इस फिल्म और अन्य मुद्दों पर बातचीत के अंश...
प्रश्न: कोलकाता में फिल्म के ट्रेलर लांच का विरोध होने पर फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने इसे तानाशाही बताया था। आप क्या कहेंगे?
उत्तर: वह सही कह रहे हैं, क्योंकि यह सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से किया गया। उन्होंने ट्रेलर तक नहीं देखा था, फिर विरोध कैसे कर सकते हैं? इसका सीधा मतलब यह था कि उनकी दादागिरी चलेगी, लेकिन आप सच्चाई को कब तक रोकेंगे। वह क्या कर पाए? ट्रेलर लांच हुआ। यूट्यूब पर कई मिलियन व्यूज हो गए।
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प्रश्न: लगातार मुद्दों वाली फिल्में करने से कलाकारों पर भी एक तरह की विचारधारा को सपोर्ट करने का टैग लग जाता है। आप ऐसे टैग्स लेने के लिए तैयार रहते हैं?
उत्तर: मैं केवल सच्चाई को दुनिया के सामने लाने के पक्ष में हूं। जिसे लोग विचारधारा कहते हैं, वह वास्तविकता है। ‘द ताशकंद फाइल्स’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ में क्या सच नहीं था? सच क्यों न दिखाएं? मेरा यही मानना है कि डरते वही हैं, जो सच्चाई का सामना नहीं करना चाहते है। मैं ट्रायोलाजी का हिस्सा रहा हूं और हमेशा सच्चाई दिखाने के पक्ष में हूं।
प्रश्न: बेबाकी से बातें और फिल्में करने से डर नहीं लगता है?
सच बोलने से डर कैसा? डर है, तो फिर फिल्में ही नहीं करनी चाहिए। फिर मुझे उसी तरह की फिल्में करनी चाहिए, मगर माफ कीजिएगा, मैं ऐसा नहीं हूं। मुझे सिर्फ जरूरत से ज्यादा बुद्धिमान और धर्मनिरपेक्ष लोगों से डर लगता है। ऐसे लोग नकली और पाखंडी होते हैं।
प्रश्न: बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर आपने कहा था कि वहां हिंदुओं को एकजुट होकर मतदान करना होगा...
उत्तर: बंगाल में जिस तरह हिंदुओं को देखा जाता है, उसे महसूस करने के बाद ही मैंने ऐसा कहा था।
प्रश्न: ट्रेलर में बंगाल को देश का लाइटहाउस कहा गया है। आपके लिए बंगाल क्या है?
उत्तर: मेरी मां है। मेरे दिल में बसा हुआ है। कोई इसे आज भी अलग करना चाहेगा, तो अलग थोड़े होने देंगे। जान दे देंगे, लेकिन ये होने नहीं देंगे।
प्रश्न: पिछले दिनों हुए वेव्स समिट 2025 में अभिनेता चिरंजीवी ने कहा था कि आपने बिना मेकअप के आम लड़के की जो छवि बनाई थी, उससे वह बहुत प्रेरित हुए थे। लोगों के बीच का हीरो बनना आपके लिए कितना जरूरी रहा?
उत्तर: आप जो किरदार निभा रहे हैं, अगर वह नहीं लगे, तो आप गलत हो जाएंगे। मैं जो भी किरदार करता हूं, उसे अच्छी तरह से समझकर ही अपना लुक बनाता हूं। मैं वाकई मेकअप नहीं करता। चिरू (चिरंजीवी) भी कमाल के एक्टर हैं। (हंसते हुए) एक एक्टर, दूसरे एक्टर की बात समझ गया।
प्रश्न: अभिनय और राजनीति दोनों अलग पेशा है। आप दोनों को कैसे संभाल रहे हैं?
उत्तर: मैं दोनों को अलग ही रखता हूं। अब मैं भाजपा का नेता हूं, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि भाजपा से जुड़ी चीजें ही फिल्मों में डाल दूं या उन्हीं की तरह बात करूं। मैं तो कई सारी फिल्में कर रहा हूं, जिसमें प्रभास के साथ ‘फौजी’, रजनी (रजनीकांत) के साथ ‘जेलर 2’ और ‘प्रजापति 2’ फिल्में शामिल हैं।
प्रश्न: दक्षिण भारतीय सिनेमा कामर्शियल माना जाता है। हिंदी में सार्थक सिनेमा और वहां कामर्शियल फिल्में करने के बीच संतुलन बना पा रहे हैं?
उत्तर: वहां का सिनेमा कामर्शियल है, लेकिन उनमें संदेश भी होता है। अब जैसे ‘फौजी’ में देशभक्ति का संदेश है। ‘जेलर 2’ अलग किस्म की फिल्म है, वहीं ‘प्रजापति 2’ पिता और बेटे के रिश्ते का आयाम दिखाएगी। वैसे भी मैं आजकल वैसी ही फिल्में करता हूं, जो मुझे गुदगुदाती हैं।
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प्रश्न: लेकिन इंडस्ट्री से जुड़े लोग कहते हैं कि संदेश देना सिनेमा का काम नहीं है...
फिल्मों में कोई न कोई संदेश होता है। दर्शकों पर निर्भर करता है कि वह उसमें से कितना लेते हैं। यह बात भी सही है कि फिल्में लोगों पर उतना असर नहीं डालती हैं, फिर भले ही उसमे कोई संदेश हो।
प्रश्न: दादा साहेब फाल्के अवार्ड मिलने के बाद क्या बदल गया है?
यकीन नहीं होता है कि इतना प्रतिष्ठित अवॉर्ड मुझे मिला है। जैसे पहले मुझे लोगों ने देखा है, आज भी वैसा ही हूं। कोई बदलाव नहीं आएगा, बल्कि मैंने अब जमीन को और कसकर पकड़ लिया है। जब लोग कहते हैं कि आप तो जीवित लीजेंड हैं, सुपरस्टार हैं, तो उसे सिर पर नहीं चढ़ने देता हूं।
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