क्या आप जानतें हैं अनंत चतुर्दशी पर क्यों बांधा जाता है रक्षासूत्र ? जानिए महत्व और पूजा विधि

क्या आप जानतें हैं अनंत चतुर्दशी पर क्यों बांधा जाता है रक्षासूत्र ? जानिए महत्व और पूजा विधि

 गणेश चतुर्थी के बाद डोल ग्यारस और उसके बाद अनंत चतुर्दशी आती है। अनंत चतुर्दशी का व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन रखा जाता है। अनंत चतुर्दशी के दिन एक ओर जहां गणेश मूर्ति का विसर्जन करते हैं, वहीं दूसरी ओर भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा का विधान होता है। भगवान विष्णु के सेवक भगवान शेषनाग का नाम अनंत है। अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी पांडवों को अनंत चतुर्दशी का महत्व बताया था।

चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था। इनके न तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं। अत: इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे। भगवान विष्णु के सेवक भगवान शेषनाग का नाम अनंत है।

अनंत चतुर्दशी क्यों मनाते हैं ?
छह चतुर्थियों का खास महत्व है- भाद्रपद शुक्ल की अनंत चतुर्दशी, कार्तिक कृष्ण की कृष्ण, रूप या नरक चतुर्दशी, कार्तिक शुक्ल की वैकुण्ठ चतुर्दशी, वैशाख शुक्ल माह की विनायक चतुर्दशी, फाल्गुन मास की चतुर्दशी (महाशिवरात्रि) और श्रावण मास की चतुर्दशी (शिवरात्रि) का खासा महत्व है।

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भाद्रपद शुक्ल की अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान अनंत की पूजा का विधान होता है। यदि आपने अपने जीवन में सब कुछ पाकर सब कुछ खो दिया है और संकटों से घिरे होकर कष्ट झेल रहे हैं तो अनंत चतुर्दशी का विधिवत व्रत रखें और पूजा करेंगे तो फिर से सभी कुछ प्राप्त कर लेंगे। इसलिए मनाते हैं अनंत चतुर्दशी का त्योहार।

अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।

अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।

मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है।

कैसे करें भगवान अनंत की पूजा ?

  1. प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेकर पूजा स्थल पर कलश स्थापित करें।
  2. कलश की विधिवत पूजा करें और भगवान विष्णु की तस्वीर को एक पाट पर स्थापित करें।
  3. कलश पर अष्टदल कमल की तरह बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करने के पश्चात एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर अनंत सूत्र तैयार करें, इसमें चौदह गांठें लगी होनी चाहिए।
  4. अनंत सूत्र को भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने रखकर दोनों की षोडशोपचार विधि से पूजा शुरू करें और उपरोक्त मंत्र का जाप करें।
  5. इसके बाद विधिवत पूजन के बाद अनंत सूत्र को बाजू में बांध लें। पुरुष बाएं हाथ में और महिलाएं बाएं हाथ में बांधें।

अनंत चतुर्दशी पर क्यों बांधते हैं अनंत सूत्र ?
इस व्रत में भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा के बाद बाजू पर अनंत सूत्र बांधा जाता है जिसका विशेष महत्व होता है। इस दिन कच्चे धागे से बने 14 गांठ वाले धागे को बाजू में बांधने से भगवान विष्णु की अनंत कृपा प्राप्त होती है। इस धागे को बांधने की विधि और नियम का पुराणों में उल्लेख मिलता है।

कैसे बांधते हैं अनंत सूत्र ?

  1. कच्चे धागे में 14 गांठ लगाकर उसे कच्चे दूध में डुबोकर ॐ अनंताय नमः: का मंत्र जपते हुए श्री विष्णु जी की विधिवत रूप से पूजा करें।
  2. आजकल बाजार में बने बनाएं अनंत सूत्र मिलते हैं जिनकी विधिवत पूजा करके बांधा जाता है। 
  3. अनंत सूत्र को पुरुषों को दाएं और महिलाओं को बाएं बाजू में बांधना चाहिए।
  4. अनंत सूत्र (शुद्ध रेशम या कपास के सूत के धागे) को हल्दी में भिगोकर 14 गांठ लगाकर तैयार किया जाता है। 
  5. हर गांठ में श्री नारायण के विभिन्न नामों से पूजा की जाती है।
  6. पहले में अनंत, श्री अनंत भगवान का पहले में अनंत, उसके बाद ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर और गोविन्द की पूजा होती है।

अनंत सूत्र बांधने के फायदे
इसे धारण करने के बाद 14 दिन तक तामसिक भोजन नहीं करते हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं तभी इसका लाभ मिलता है। इस सूत्र को बांधने से व्यक्ति को सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है। यदि जीवन में सबकुछ खो चुके हो तो अनंत चतुर्दशी पर भगवान अनंत की विधिवत पूजा करके यह धागा अवश्य बांधें और नियमों का पालन करें तो फिर से सब कुछ प्राप्त हो जाएगा।

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अनंत सूत्र का न करें अपमान
कहते हैं कि कौंडिल्य ऋषि ने इस धागे को अपनी पत्नी के बाजू में बंधा देखा तो इसे जादू टोना मानकर उनके बाजू से निकालकर इसे जला दिया था। इसके ऋषि को भारी दु:खों का सामना करना पड़ा था। भूल का पता चलने पर उन्होंने भगवान अनंत की 14 वर्षों तक तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने फिर से उन्हें सुखी और धनपति बना दिया था। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के दिन भी इस व्रत के पश्चात फिरे थे।

भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों द्वारा जुए में अपना राजपाट हार जाने के बाद श्रीकृष्ण से पूछा था कि दोबारा राजपाट प्राप्त हो और इस कष्ट से छुटकारा मिले इसका उपाय बताएं तो श्रीकृष्ण ने उन्हें परिवार सहित अनंत चतुर्दशी का व्रत बताया था।









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