राधा रानी के भक्तों के लिए खास है यह मंदिर, मोर को लगता है पहला भोग

राधा रानी के भक्तों के लिए खास है यह मंदिर, मोर को लगता है पहला भोग

नई दिल्ली :  मथुरा में में स्थित बरसाना पूरी तरह से देवी राधा को ही समर्पित माना जाता है। आप इस बात का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि बरसाने और इसके आसपास के क्षेत्र में केवल राधे-राधे ही सुनाई देता है। बरसाना में स्थित राधा रानी मंदिर की प्रसिद्धि केवल मथुरा क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दूर-दूर से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

मंदिर की खासियत

लाडली जी महाराज मंदिर को बरसाने की लाडली का मंदिर' और 'राधा रानी का महल' के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो मंदिर में रोजाना भक्तों की भीड़ उमड़ती है। लेकिन राधा अष्टमी और लठमार होली जैसे पर्वों पर भी इस मंदिर की छटा निराली होती है।

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राधा अष्टमी के पावन अवसर पर लाड़ली जी को 56 भोग अर्पित किए जाते हैं। इस भोग को सबसे पहले मोर को खिलाया जाता है और इसके बाद इसे प्रसाद के रूप में भक्तों को बांटा जाता है। जिस पहाड़ी पर यह मंदि स्थित है, उसे बरसाने का माथा कहा जाता है।

मंदिर की अन्य खास बातें

मंदिर के निर्माण में लाल और सफेद पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। मंदिर के गर्भ ग्रह तक पहुंचने के लिए 200 से भी अधिक सीढ़ियों की चढ़ाई चढ़नी होती है। लाडली जी मंदिर के पास ही ब्रह्मा जी का मंदिर है। साथ ही मंदिर के पास में अष्टसखी मंदिर भी स्थापित है, जो मुख्य रूप से राधा और उनकी प्रमुख सखियों को समर्पित है।

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किसने करवाया निर्माण

माना जाता है कि लाडली जी महाराज मंदिर की नींव भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र राजा वज्रनाभ द्वारा रखी गई थी। वर्तमान में हमे मंदिर का जो स्वरूप देखने को मिलता है, उसका निर्माण सन् 1675 ई. में राजा वीर सिंह ने करवाया था। इसमें सम्राट अकबर के सूबेदार राजा टोडरमल ने भी उनका सहयोग किया।









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