माता सीता ने क्यों किया दशरथ का पिंडदान? जानें

माता सीता ने क्यों किया दशरथ का पिंडदान? जानें

पितृ  पक्ष हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक माना जाता है और इस बार का पितृ पक्ष दुर्लभ संयोग लेकर आया है क्योंकि इस बार का पितृ पक्ष 7 सितंबर चंद्र ग्रहण से प्रारंभ हुआ और इसकी समाप्ति सूर्य ग्रहण के साथ 21 सितंबर को होगी।

यह समय हमारे पूर्वजों को याद करने, उनकी आत्मा की शांति और आशीर्वाद पाने के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का सबसे पवित्र अवसर माना जाता है। परंपरा के अनुसार यह कर्म घर के पुरुष सदस्य करते आए हैं, लेकिन समय के साथ यह सवाल बार-बार उठता है कि क्या महिलाएं भी तर्पण कर सकती हैं? तो चलिए जानते हैं।

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माता सीता का पिंडदान

वाल्मीकि रामायण में एक अत्यंत भावुक प्रसंग मिलता है। जब वनवास के दौरान जब भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी गया पहुंचे, उस समय पितृ पक्ष चल रहा था। वहां एक ब्राह्मण ने श्राद्ध की सामग्री जुटाने को कहा। श्री राम और लक्ष्मण सामग्री लाने चले गए, लेकिन उन्हें बहुत देर हो गई।

ब्राह्मण देव ने माता सीता से पिंडदान (Sita Tarpan Dasharatha) करने का आग्रह किया पहले तो माता सीता असमंजस में थीं, तभी स्वर्गीय महाराज दशरथ ने दिव्य रूप में दर्शन देकर उनसे अपने हाथों से पिंडदान की इच्छा जताई। समय की गंभीरता को समझते हुए माता सीता ने फल्गु नदी के किनारे बालू से पिंड बनाया और वट वृक्ष, केतकी पुष्प, फल्गु नदी और एक गौ को साक्षी मानकर पिंडदान किया।

इस पवित्र कर्म से राजा दशरथ की आत्मा (raja Dashrath Shradh story) संतुष्ट हुई और उन्होंने माता सीता को आशीर्वाद दिया। जब श्री राम लौटे और यह सुना, तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि बिना सामग्री और बिना पुत्र के श्राद्ध कैसे संभव है। तभी वटवृक्ष और अन्य साक्षियों ने माता सीता के इस पवित्र कार्य की गवाही दी।

गरुड़ पुराण का उल्लेख  

  • गरुड़ पुराण में भी यह स्पष्ट कहा गया है कि पितरों के प्रति कर्तव्य निभाने का अधिकार केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है।
  • पुरुष सदस्य की अनुपस्थिति: यदि परिवार में कोई पुरुष न हो, तो स्त्री स्वयं श्राद्ध और तर्पण कर सकती है।
  • पुत्री का कर्तव्य: यदि किसी पिता का पुत्र न हो, तो पुत्री अपने पिता का श्राद्ध और तर्पण कर सकती है।
  • अकेली महिला: यदि कोई महिला अकेली है और उसका कोई पुरुष रिश्तेदार नहीं है, तो वह भी अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर सकती है।

सार

धर्म का सार यही है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया गया कार्य मन की श्रद्धा और भक्ति से होना चाहिए, न कि केवल लिंग के आधार पर तय किया जाए। माता सीता का उदाहरण और गरुड़ पुराण का स्पष्ट उल्लेख यह साबित करता है कि महिलाएँ भी तर्पण और श्राद्ध करने का पूर्ण अधिकार रखती हैं।







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