केले की खेती में रुचि रखने वाले किसानों के लिए यह समय अत्यंत महत्वपूर्ण है. कृषि वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि किसान 15 सितंबर तक रोपाई अवश्य पूरी कर लें. इस अवधि में लगाए गए पौधे मजबूत होते हैं और भविष्य में उनकी पैदावार दोगुनी तक हो सकती है. कृषि विज्ञान केंद्र बलहा मकसूदन पुपरी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.रामईश्वर प्रसाद ने बताया कि इस मौसम में रोपाई करने से किसान न सिर्फ बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि दो से तीन गुना तक मुनाफा भी कमा सकते हैं. देर से रोपाई करने पर पौधे ठंड और धुंध के प्रभाव में आकर कमजोर पड़ सकते हैं, जिससे उत्पादन पर विपरीत असर पड़ता है. केला एक गर्म और नमी वाली जलवायु की फसल है, इसके लिए 15 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है. ठंड, पाला और तेज हवाएं केले की फसल के लिए घातक साबित हो सकती हैं.
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एक्सपर्ट टिप्स से ऐसे तैयार करें खेत
खेती की तैयारी के संदर्भ में वैज्ञानिकों ने विशेष निर्देश दिए हैं. रोपाई से पहले खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए और खरपतवार को पूरी तरह साफ कर लेना चाहिए. खेत में प्रति हेक्टेयर 10 से 15 टन गोबर की खाद डालना लाभकारी होता है. जहां जलजमाव की संभावना रहती है, वहां ऊंची क्यारियों या नालियों का निर्माण कर रोपाई करनी चाहिए. पौधे लगाने के लिए 60x60x60 सेंटीमीटर के गड्ढे खोदें, उनमें गोबर की खाद और नीम की खली डालकर कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें. इसके बाद पौधा रोपें और ध्यान रखें कि प्रकंद मिट्टी की सतह से 5 सेंटीमीटर नीचे हो. पौधों के बीच 2×2 मीटर की दूरी रखना जरूरी है ताकि पौधों को पर्याप्त जगह और पोषण मिल सके. केले को नमी की आवश्यकता होती है, लेकिन जलभराव से जड़ें सड़ जाती हैं. इससे बचने के लिए ड्रिप सिंचाई तकनीक का उपयोग सबसे बेहतर है.
इन किस्मों की खेती होगी लाभदायक
बेहतर उत्पादन के लिए किस्म का चुनाव भी अहम है. डॉ. सिंह ने बताया कि उत्तर भारत में ग्रांड 9 और ड्वार्फ कैवेंडिश जैसी किस्में व्यवसायिक दृष्टि से अधिक उपयुक्त हैं. वहीं स्थानीय उपभोक्ताओं की पसंद को देखते हुए मालभोग, चिनिया, चीनी चंपा, कांथाली और अल्पना जैसी किस्मों की खेती लाभदायक हो सकती है. सब्जी उत्पादन के लिए कोठिया और साबा बतीसा किस्मों को अपनाया जा सकता है. वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि वे टिशू कल्चर पौधों को प्राथमिकता दें. ये पौधे रोगमुक्त, एकसमान वृद्धि वाले और बाजार में अधिक मांग वाले होते हैं. यदि किसान सकर से पौधे लगाते हैं तो मजबूत और स्वस्थ तलवारनुमा सकर का ही प्रयोग करें. इससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों पर सकारात्मक असर पड़ेगा.
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ऐसे करें रोग और कीट नियंत्रण
रोग और कीट नियंत्रण भी केले की खेती का महत्वपूर्ण पहलू है. वैज्ञानिकों के अनुसार तना घुन, एफिड और नेमाटोड प्रमुख कीट हैं, जबकि पनामा विल्ट, सिगाटोका लीफ स्पॉट और बनाना बंची टॉप जैसे रोग अक्सर फसल को प्रभावित करते हैं. इससे बचाव के लिए रोगमुक्त पौधों का प्रयोग सबसे जरूरी है. यदि किसी पौधे में रोग के लक्षण दिखें तो उसे तुरंत बाग से बाहर कर देना चाहिए. इसके अलावा नीम आधारित जैविक उत्पाद और परंपरागत जैविक उपाय भी कारगर साबित होते हैं. बाग की नियमित सफाई, जल निकासी की उचित व्यवस्था और समय-समय पर निगरानी करने से रोग और कीटों के प्रकोप से बचा जा सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि किसान वैज्ञानिक पद्धति से केले की खेती अपनाते हैं तो कम लागत में दोगुना उत्पादन और मुनाफा संभव है.
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