किस मामले में बोले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस गवई? हम कुछ नहीं कर सकते, भगवान से कहिए वही कुछ करें

किस मामले में बोले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस गवई? हम कुछ नहीं कर सकते, भगवान से कहिए वही कुछ करें

सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायधीश जस्टिस बी आर गवई द्वारा की गई एक टिप्पणी को लेकर विवाद शुरू हो गया है। मध्य प्रदेश में स्थित खजुराहो मंदिर परिसर में क्षतिग्रस्त भगवान विष्णु की मूर्ति की पुनर्स्थापना की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए, जस्टिस बीआर गवई की टिप्पणी को वकीलों के एक वर्ग ने असंवेदनशील माना है और उनसे बयान वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

इससे पहले मुख्य न्यायाधीश गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मंगलवार को खजुराहो मंदिर के परिसर में मौजूद जावरी मंदिर में भगवान विष्णु की सात फुट ऊंची प्रतिमा को दोबारा स्थापित करने के अनुरोध से जुड़ी एक याचिका को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि यह याचिका सिर्फ प्रचार के लिए दायर की गई है। जस्टिस गवई और जस्टिस के विनोद चंद्र ने राकेश दलाल नामक व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए कुछ टिप्पणियां की थीं।

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किस टिप्पणी पर विवाद

मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान कहा था, “यह याचिका सिर्फ प्रचार के लिए दायर की गई है। जाकर भगवान से कुछ करने के लिए कहिए। अगर आप कह रहे हैं कि आप भगवान विष्णु के प्रति गहरी आस्था रखते हैं तो प्रार्थना करें और थोड़ा ध्यान लगाएं।”

इस फैसले के सार्वजनिक होते ही जस्टिस गवई की टिप्पणी की सोशल मीडिया पर कड़ी आलोचना हुई है। मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग चलाने की मांग करने वाले पोस्ट भी वायरल हुए हैं। यूजर्स का कहना कि ऐसे बयानों से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है। कई वकीलों ने भी CJI गवई को पत्र लिखकर उनके बयान को सनातन धर्म के खिलाफ बताया है और इसे वापस लेने की मांग भी कर रहे हैं।

सत्यम सिंह राजपूत नाम के एक वकील ने मुख्य न्यायाधीश गवई को एक पत्र लिखकर उनसे अपनी टिप्पणी पर पुनर्विचार करने और उसे वापस लेने को कहा है। राजपूत ने लिखा, "भगवान विष्णु के एक समर्पित अनुयायी के रूप में, मैं व्यक्तिगत रूप से इन टिप्पणियों से स्तब्ध हूं। लाखों हिंदुओं के लिए, भगवान विष्णु के प्रति भक्ति केवल व्यक्तिगत आस्था का विषय नहीं है, बल्कि उनके आध्यात्मिक अस्तित्व और सांस्कृतिक पहचान का आधार है।” वहीं विनीत जिंदल ने मुख्य न्यायाधीश को लिखे अपने पत्र में कहा, "मुझे उम्मीद है कि सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रपति इस मामले को गंभीरता से लेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि हर धर्म की गरिमा बनी रहे।"








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