हिंदू धर्म में भोजन को प्रसाद के समान पवित्र स्थान दिया गया है. हमारे शास्त्रों में कहा गया है अन्नं ब्रह्म यानी अन्न ही ब्रह्म है. देवी अन्नपूर्णा को भोजन की अधिष्ठात्री माना गया है, इसलिए हर दाना देवत्व से जुड़ा हुआ समझा जाता है. लेकिन जितना पवित्र अन्न है, उतना ही कठोर नियम इसके सेवन को लेकर भी है. धर्मग्रंथ स्पष्ट कहते हैं कि गिरा हुआ अन्न इंसान के लिए वर्जित है, क्योंकि यह अदृश्य प्राणियों का आहार होता है.
गरुड़ पुराण का रहस्य:- गरुड़ पुराण के प्रीत खंड में उल्लेख है कि जो भोजन ज़मीन पर गिर जाता है, वह तुरंत अपवित्र हो जाता है. यह अन्न देवताओं या इंसानों का हिस्सा नहीं रहता, बल्कि प्रेत, पिशाच और ब्रह्मराक्षस का आहार बन जाता है. इसीलिए कहा जाता है कि यदि कोई मनुष्य गिरे हुए अन्न का सेवन करता है, तो उसका पुण्य क्षीण हो जाता है और जीवन में अड़चनें बढ़ने लगती हैं. धर्मशास्त्रों के अनुसार, गिरे हुए अन्न का सेवन करने से इंसान का मन अशांत होता है और उस पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है. यही कारण है कि संत-महात्मा इसे ब्रह्मराक्षस का हिस्सा मानकर दूर रहने की सलाह देते हैं.
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क्यों नहीं खाना चाहिए गिरे हुए भोजन को?
1. पवित्रता का नियम- अन्न का हर दाना देवता का अंश माना गया है. गिरा हुआ अन्न अपवित्र हो जाता है और इसे ना तो पूजा में चढ़ाया जा सकता है, ना ही किसी अतिथि को परोसा जा सकता है.
2. अदृश्य जीवों का हिस्सा- लोकमान्यता है कि गिरा हुआ अन्न अदृश्य प्राणियों के लिए प्रसाद बन जाता है. ऐसे जीव इसे ग्रहण करके तृप्त होते हैं.
3. धर्म की चेतावनी- गरुड़ पुराण चेतावनी देता है कि जो इंसान गिरे हुए भोजन को खाता है, उसकी किस्मत पर ग्रहण लगता है. उसके जीवन में रुकावटें, मानसिक तनाव और अपयश बढ़ सकता है.
4. स्वास्थ्य और शुचिता का पहलू- गिरे हुए भोजन पर धूल, कीटाणु और अशुद्धियां लग सकती हैं. यही कारण है कि विज्ञान भी इस परंपरा को तार्किक ठहराता है.
लोकमान्यता और परंपरा:- गांवों में आज भी यह कहावत मशहूर है गिरा हुआ अन्न ब्रह्मराक्षस का होता है. बुजुर्ग मानते हैं कि अगर कोई इंसान गिरे हुए भोजन को खा ले, तो उस पर ब्रह्मराक्षस का प्रभाव पड़ सकता है. इस डर और श्रद्धा के कारण लोग आज भी जमीन पर गिरे अन्न को खुद खाने के बजाय पशु-पक्षियों या भूमि देवता को अर्पित कर देते हैं.वास्तव में यह परंपरा समाज को अनुशासन सिखाती है. यह हमें बताती है कि भोजन का सम्मान करना चाहिए और जो अन्न हमारे हिस्से का नहीं रहा, उसे आदरपूर्वक त्याग देना ही सही है.आज के समय में भी यह नियम सिर्फ धार्मिक आस्था से नहीं जुड़ा है, बल्कि स्वास्थ्य और स्वच्छता से भी मेल खाता है. डॉक्टर और वैज्ञानिक भी कहते हैं कि गिरे हुए भोजन में हानिकारक बैक्टीरिया और धूल कण चिपक सकते हैं, जो पेट और आंतों के रोगों का कारण बन सकते हैं. यानी धर्म और विज्ञान दोनों यही कहते हैं कि गिरा हुआ अन्न खाना हानिकारक है.
धर्मग्रंथों, लोकमान्यता और आधुनिक विज्ञान सभी इस बात पर सहमत हैं कि गिरा हुआ अन्न इंसानों के लिए नहीं है. यह अदृश्य प्राणियों का हिस्सा माना जाता है, इसलिए इसका सम्मान करना चाहिए और पशु-पक्षियों को अर्पित कर देना ही सर्वोत्तम उपाय है.
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