सरसों की खेती के लिए ठंडी जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है. इसकी बुवाई का सही समय अक्टूबर से नवंबर के बीच होता है. इस दौरान तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए. खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई हल से और बाद की जुताई हैरो से करनी चाहिए, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए.
भारत में सरसों की खेती को किसानों के लिए लाभकारी फसल माना जाता है. यह मुख्य रूप से तिलहनी फसलों में आती है और तेल उत्पादन के लिए व्यापक स्तर पर बोई जाती है. इसकी खेती अधिकतर उत्तर भारत में की जाती है. अब देश के अन्य हिस्सों में भी किसान इसकी ओर रुझान बढ़ा रहे है. कम लागत और जल्दी तैयार होने वाली फसल होने के कारण किसान इसे बुआई से लेकर कटाई तक आसानी से संभाल सकते है. सरसों की खेती के लिए ठंडी जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है. इसकी बुवाई का सही समय अक्टूबर से नवंबर के बीच होता है. इस दौरान तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए. खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई हल से और बाद की जुताई हैरो से करनी चाहिए, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए. खेत में पर्याप्त नमी होना भी जरूरी है, जिससे बीज अंकुरित हो सके.
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बीज बोने से पहले उसका शोधन करना चाहिए ताकि रोगों से बचाव हो सके. सामान्यत: सरसों की बुवाई 4 से 5 किलो बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होती है. बीजों को 30 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बोना बेहतर रहता है. सिंचाई की बात करें तो इसकी पहली सिंचाई बुवाई के तीन सप्ताह बाद और दूसरी फूल आने पर करनी चाहिए. अगर समय पर बारिश हो जाए तो सिंचाई की जरूरत कम पड़ती है.
खेती में उर्वरक और खाद का भी अहम योगदान होता है. सरसों की पैदावार बढ़ाने के लिए खेत में गोबर की खाद के साथ-साथ नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित उपयोग जरूरी है. रोगों और कीटों से बचाव के लिए समय-समय पर फसल की निगरानी करनी चाहिए. सामान्यत: सरसों की फसल 110 से 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.
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अब बात करें मुनाफे की तो सरसों की खेती किसानों के लिए अच्छा आय का जरिया है. एक एकड़ खेत से औसतन 8 से 10 क्विंटल सरसों की पैदावार मिल जाती है. वर्तमान समय में बाजार भाव 5,000 से 6,000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिलता है. इस हिसाब से किसान एक एकड़ से 40,000 से 60,000 रुपये तक की आमदनी कर सकते है. इसमें लागत लगभग 10,000 रुपये तक आती है, जिससे शुद्ध मुनाफा 30,000 से 50,000 रुपये तक आसानी से हो सकता है.
सरसों का उपयोग केवल तेल निकालने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका इस्तेमाल मसालों, अचार और पशु चारे में भी होता है. सरसों के तेल को औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है, जो त्वचा और बालों के लिए लाभकारी है. इसके अलावा सरसों की खली पशुओं के चारे में मिलाई जाती है, जिससे उनका स्वास्थ्य बेहतर होता है.
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