सबने कहा घूसखोर का बेटा!रिश्वतखोर के आरोपी पूर्व कर्मचारी जागेश्वर के बेटे ने सुनाई अपनी आपबीती

सबने कहा घूसखोर का बेटा!रिश्वतखोर के आरोपी पूर्व कर्मचारी जागेश्वर के बेटे ने सुनाई अपनी आपबीती

रायपुर: आपने फिल्मों में 'मेरा बाप चोर है' का संवाद जरूर सुना होगा, लेकिन रायपुर के एक परिवार ने इसी तरह की हकीकत को 39 साल तक जिया। अंतर बस इतना था कि यहां एक बेटे को यह कलंक झेलना पड़ा, 'मेरा बाप घूसखोर है'।

सड़क परिवहन निगम के पूर्व कर्मचारी जागेश्वर प्रसाद अवधिया पर 100 रुपये की कथित रिश्वत का आरोप था। 39 साल बाद अदालत ने उन्हें बेगुनाह साबित कर दिया, लेकिन इन चार दशकों की कानूनी लड़ाई ने उनका जीवन ही तबाह नहीं किया, बल्कि पूरे परिवार पर सामाजिक तिरस्कार का गहरा बोझ डाल दिया।

पुरानी बस्ती के अवधियापारा इलाके के निवासी जागेश्वर का बेटा नीरज अवधिया आज 52 साल का है, लेकिन अब भी उस दिन को नहीं भूल पाता जब वह महज कक्षा छठवीं का छात्र था। लोकायुक्त की टीम ने घर में धावा बोला था। अनाज के कनस्तर और चाय पत्ती के डिब्बे तक खंगाले जा रहे थे।

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वह घबराकर मां से पूछ बैठा- 'ये सब क्यों हो रहा है?' मां का जवाब था- 'यह तुम्हारी समझ से बाहर है, जाओ बाहर खेलो।' इसके बाद के दिनों में नीरज और उनके सहपाठी, पड़ोसी बच्चे उन्हें घूसखोर का बेटा कहने लगे। परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी। किताबों और बस्तों की कमी हो गई और जूते भी नहीं थे। समाज ने उनसे दूरी बना ली और रिश्तेदारों ने भी संपर्क तोड़ लिया। दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ा। इस बीच, उनके पिता की कानूनी लड़ाई चलती रही।

शिक्षक कहते थे- जूते नहीं, तो स्कूल क्यों आते हो

नीरज ने बताया कि घर में दो भाई और दो बहनें थीं। सभी ने मिलकर अखबार से ठोंगे यानी पैकेट बनाने का काम शुरू किया। दिनभर ठोंगे बनाते और शाम को चूल्हा जलता। अभावों के बीच पढ़ाई जारी रखी, लेकिन स्कूल में शिक्षकों का व्यवहार भी बदल गया। उन्हें कहा जाता था कि अगर जूते नहीं पहन सकते तो स्कूल क्यों आते हो। नीरज ने बताया कि आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि उनके पिता फुल पैंट नहीं सिलवा सके, इसलिए उन्हें 12वीं कक्षा तक हाफ पैंट पहनकर ही स्कूल जाना पड़ा।

पिता को हुए आर्थिक नुकसान के मुआवजे की आस

अब नीरज अपने पिता को हुए आर्थिक नुकसान के मुआवजे की उम्मीद लगाए हुए हैं। उन्होंने कहा कि संघर्ष ने उन्हें इतना समझदार बना दिया है कि वे अपने पिता और परिवार की समस्याओं को अपनी समस्याएं मानते हैं। उन्होंने कभी भी जेबखर्च नहीं मांगा और प्राइवेट में आगे की पढ़ाई की। उन्होंने पीजी भी किया, लेकिन पिता की कानूनी लड़ाई और मां की असमय मृत्यु ने उन्हें जिम्मेदारियों में जकड़ लिया। अब वे मुआवजे की उम्मीद कर रहे हैं और यदि आवश्यक हुआ, तो इसके लिए कानूनी लड़ाई भी लड़ने को तैयार हैं।









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