जानिए कब और क्यों मनाई जाती है नवपत्रिका और निशा पूजा? जानें धार्मिक महत्व

जानिए कब और क्यों मनाई जाती है नवपत्रिका और निशा पूजा? जानें धार्मिक महत्व

शारदीय नवरात्रि शक्ति, भक्ति और उत्सव का समय है। यह वह पावन अवसर है जब भक्त माता दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते हैं और उनके दिव्य स्वरूप का अनुभव करते हैं। इस दौरान नवपत्रिका पूजा और निशा पूजा विशेष महत्व रखती हैं।

नवपत्रिका पूजा में नौ पत्तों के माध्यम से मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है, जबकि निशा पूजा रात्रि काल में देवी की शक्ति और कृपा का अनुभव करने का पवित्र अवसर है। शारदीय नवरात्रि के ये अनुष्ठान भक्तों के लिए शक्ति, आशीर्वाद और आध्यात्मिक ऊर्जा का अद्भुत अनुभव लेकर आते हैं।

ये भी पढ़े : मुखिया के मुखारी - वक्त था निखरने का, ईमानदारी बिखर गई

नवपत्रिका पूजा और निशा पूजा का महत्व

नवपत्रिका पूजा

नवपत्रिका पूजा दिवस को महा सप्तमी के रूप में भी जाना जाता है। इसी दिन निशा पूजा भी होती है। सप्तमी की देवी मां कालरात्रि मानी जाती हैं। पूर्वोत्तर और बंगाल में सप्तमी का विशेष महत्व है, क्योंकि यही दिन दुर्गा पूजा के महापर्व की शुरुआत बनता है। यह पर्व खासकर असम, बंगाल और ओडिशा में बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

नवपत्रिका का अर्थ है नौ प्रकार के पत्तों से देवी मां की पूजा करना। इसे कलाबाऊ पूजा भी कहा जाता है। नवरात्रि के नौ दिन और माता के नौ रूपों के अनुसार, हर पत्ते को देवी के अलग-अलग रूप का प्रतीक माना जाता है। इसमें केला, कच्ची, हल्दी, अनार, अशोक, मनका, धान, बेल और जौ के पत्ते शामिल होते हैं।  

निशा पूजा

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, निशा का अर्थ है रात्रि। नवरात्रि में अष्टमी तिथि का विशेष महत्व है। अष्टमी तिथि की शुरुआत रात में होती है, इसलिए उस समय भी पूजा की जा सकती है। विशेष रूप से, सप्तमी की रात को रात्रि काल में निशा पूजा की जाती है। इसी रात को अष्टमी निशा पूजा और संधि पूजा भी संपन्न होती है। संधि पूजा का मतलब है जब सप्तमी समाप्त होकर अष्टमी प्रारंभ होती है।

नवपत्रिका पूजा की विधि-

  • सप्तमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान किया जाता है।
  • सभी नौ पत्तों को एक साथ बांधकर उन्हें भी स्नान कराया जाता है।
  • स्नान के बाद पारंपरिक साड़ी, यानी लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी, पहनी जाती है।
  • इसी प्रकार की साड़ी से नवपत्रिका और पूजा स्थल को सजाया जाता है।
  • पूजा स्थल पर मां दुर्गा की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है।
  • प्राण प्रतिष्ठा के बाद षोडशोपचार पूजा संपन्न होती है। इसमें जल, फल, फूल, चंदन, कंकू, नैवेद्य और 16 प्रकार के श्रृंगार अर्पित किए जाते हैं।
  • अंत में मां दुर्गा की महाआरती होती है और प्रसाद का वितरण किया जाता है।









You can share this post!


Click the button below to join us / हमसे जुड़ने के लिए नीचें दिए लिंक को क्लीक करे


Related News



Comments

  • No Comments...

Leave Comments