खेती में हमेशा बदलाव और प्रयोग की जरूरत होती है. आज किसान भाई सोयाबीन, मूंग, उड़द, मक्का जैसी परंपरागत फसलें तो करते ही हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि नकदी फसलों की ओर भी ध्यान दिया जाए. ऐसी ही एक लाभदायक फसल है अंग्रेजी मटर. यह फसल कम समय में तैयार हो जाती है और बाजार में इसकी अच्छी मांग रहती है. किसानों को इससे पारंपरिक फसलों की तुलना में अधिक मुनाफा मिल सकता है.
किसान भागीरथ पटेल कहते है कि अंग्रेजी मटर को आम भाषा में ग्रीन पीज भी कहा जाता है. यह ठंड के मौसम की प्रमुख सब्जी है. इस मटर की खासियत यह है कि इसका स्वाद मीठा और दानों में नरमी होती है. यही कारण है कि बाजार में इसकी मांग सालभर बनी रहती है. दाल, सब्जी, पराठा, पुलाव और स्नैक्स जैसी कई डिशेज में अंग्रेजी मटर का उपयोग किया जाता है.
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अंग्रेजी मटर की बुवाई अक्टूबर से दिसंबर के बीच करना सबसे अच्छा माना जाता है. यह फसल ठंडी जलवायु में तेजी से बढ़ती है और सिर्फ दो महीने (६० से ७० दिन) में तैयार हो जाती है. किसानों के लिए यह एक बड़ी सुविधा है क्योंकि कम समय में उत्पादन लेकर बाजार में बेच सकते हैं.
इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी (Loamy Soil) सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें पानी की निकासी अच्छी हो. भारी या अधिक चिकनी मिट्टी में बीज अंकुरण कमजोर होता है. खेत को अच्छी तरह जुताई कर भुरभुरी और समतल बना लेना चाहिए. अंग्रेजी मटर ठंडी और हल्की नमी वाली जलवायु पसंद करती है, इसलिए इसे रबी सीजन में उगाना बेहतर होता है.
एक हेक्टेयर खेत के लिए लगभग ८० से १०० किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है. बीजों को बोने से पहले फफूंदनाशी दवा से उपचारित करना चाहिए ताकि अंकुरण अच्छा हो और रोगों से बचाव हो सके. कतार से कतार की दूरी ३० से ४५ सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी १० सेंटीमीटर रखनी चाहिए.
खेत की तैयारी के समय गोबर की खाद या कंपोस्ट डालना बहुत फायदेमंद रहता है. इसके अलावा, रासायनिक खादों में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश संतुलित मात्रा में डालने से उत्पादन बढ़ता है. पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करनी चाहिए. इसके बाद हर १० से १५ दिन में हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए. फूल और फलियां बनने के समय पानी की कमी न होने दें.
अंग्रेजी मटर में पाउडरी मिल्ड्यू और जड़ गलन जैसी बीमारियां आम होती हैं. इसके बचाव के लिए समय-समय पर जैविक दवाओं का छिड़काव किया जा सकता है. फली खाने वाले कीट या पत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों से बचाने के लिए नीम तेल या सुरक्षित कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए. सही तकनीक से खेती करने पर प्रति हेक्टेयर ८ से १० टन हरी फलियां आसानी से मिल सकती हैं.
अंग्रेजी मटर की सबसे बड़ी खासियत है इसका बाजार भाव. सर्दियों के दिनों में मटर की कीमतें ४० से ६० रुपए किलो तक रहती हैं. यदि किसान शुरुआती सीजन में मटर को बाजार में लाते हैं तो दाम और ज्यादा मिलते हैं. जल्दी तैयार होने के कारण किसान दूसरी फसल के लिए भी खेत खाली कर सकते हैं, जिससे सालभर में अतिरिक्त आय संभव हो जाती है.
किसान भाइयों, अंग्रेजी मटर की खेती आपके लिए कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाने का सुनहरा अवसर है. यह फसल ज्यादा पानी नहीं मांगती, जल्दी तैयार हो जाती है और बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है. पारंपरिक फसलों के साथ अगर आप अंग्रेजी मटर जैसी नकदी फसलें अपनाते हैं, तो आय में बढ़ोतरी के साथ खेती और भी लाभदायक हो सकती है.
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