मुखिया के मुखारी - जनसंपर्क बना कर { हाथ } संपर्क है 

मुखिया के मुखारी - जनसंपर्क बना कर { हाथ } संपर्क है 

अति सर्वत्र वर्जयेत सूक्ति तो कालांतर में लिखी गई पर इसका अर्थ समझकर भी कोई समझना न चाहे तो उसका कुछ हो नही सकता, सत्ता की मदांधता इसे परिश्रित करती है और यही छत्तीसगढ़ में हो रहा, जनसंपर्क विभाग कर { हाथ } सम्पर्क विभाग की अति तक पहुँच गया है ,और शायद अपने कारनामों से अपने को गौरवान्वित भी महसूस कर रहा है, हाथापाई के बाद जाँच की मांग भेड़िये के खरगोश बनने की मासूम अदा है,घपले घोटालों की लंबी फेहरिस्त दाऊ दलाल गिरोह के सक्रिय सदस्य अधिकारी और कर्मचारी भी रहें है । नित नए प्रकरणों का खुलासा हो रहा ,कई नामजद हो रहे, कईयों ने जेल की सैर कर ली, कई उसकी देहरी पर खड़े हैं, पर न उनकी देह में न उनकी शख्सियत पर कोई असर पड़ रहा है, कोयला ,रेत, सट्टा,नौकरी ,शराब ,दवाई ,संस्कृति ,स्थानान्तरण ,पदस्थापना ऐसा कौन सा विभाग है जहाँ भ्रष्टाचार नही हुआ ,बाहरी लुटेरे और छत्तीसगढ़िया डकैतों ने मिलकर दाऊ दलाल गिरोह बनाया उनके कुकर्मों से उकताए छत्तीसगढ़ियों ने उस सरकार को रुखसत किया, पर उन कुव्यवस्थाओं की रुखसती आज तक नही हो पाई।

शाषन और जन के बीच संपर्क बनाने के लिए बने जनसंपर्क विभाग के संवाद में वाद -विवाद और हाथापाई होने लगा संवाद ,संवाद विहीन हो शर्महीन बनकर कह रहा की हड़ताल करेंगे ,कुकर्मो के लिए हड़ताल ?वीडियो में दिख रहा की तिवारी सब पर भारी पड़ने की कोशिश में है ,शासकीय मर्यादाओं को महामारी बन तार -तार कर रहा है, विज्ञापनों की बंदर बांट जिसका न कोई मापदंड, न आधार बोरे बासी ,महाकुंभ ,राजिम कुंभ में इवेंट के नाम पर करोड़ो के वारे न्यारे ,होर्डिंग में कई गफलत आज भी जारी है, जिस प्रदेश के उच्चाधिकारी IAS,IPS,IFS,राज्य प्रशासनिक सेवा के जेलों की हवा खा चुकें हैं ,नामजद आरोपी हैं, कइयों के खिलाफ जाँच चल रही है ,ऐसे में जनसंपर्क में क्या ईमानदारी की गंगा बह रही है ? जहाँ पूर्व मुखिया, मंत्री ,नेता और व्यापारी भ्रष्टाचार की दलदल में धसे हैं, वहां क्या जनसंपर्क में दलाली नही चल रही?  कुकुरमुत्ते की तरह उग आए, समाचार माध्यमों ने अधिकारियों की मुहंमागी मुराद पूरी कर दी है, बड़े ,छोटे ,मझोलों के बीच अपनों की खोज और उन्हें पुरुस्कृत कर कमीशन की चाहत ने संपादक न लिख पाएं उन्हें भी संपादक के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया है, जो संक्षिप्त सारांश न लिख सकें वों पुरुस्कार विजेता हैं।

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न्यायपालिका के चेहरे से जैसे नकाब हट रहा वैसे ही  एक दिन नकाब मीडिया का भी उतरेगा, प्रसार संख्या के हिसाब से हर संस्थान में  बिजली चोरी हो रही ,लीज की जमीन शर्तों का उल्लंघन, अख़बारों के दफ्तरों में व्यवसायिक परिसर, चुनावों में हर राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों से उगाही ,अवैध झुग्गियों की ख़बरें छापने वालों को अपने कुकुर्त्यों कों छुपाने के लिए विज्ञापनों के बंदर बांट के लिए मीडिया को भी इन अधिकारियों का साथ चाहिए ,जिनके पास रीवा में बारी नही वों यहां आलिशान बंगलें और बेनामी सम्पत्तियों के मालिक तनख्वाह के भरोसे तो नहीं बनें?  इनके सम्पत्तियों की भी जाँच होनी चाहिए ACB ,EOW की नजरें भी इन पर इनायत होनी चाहिए, समाचार समूहों का संचालन अब कोई मिशन नही रहा, न उनका जनसरोकार से कोई नाता है ,ये विशुद्ध व्यवसायिक प्रतिष्ठान है जो विज्ञापनों के लिए कमीशन तक दे रहे बदलती परिस्थितियां और व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा ने जनसंपर्क में बेहिसाब अवैध उगाही के द्वार खोल दिए हैं ,जहां असंख्य खिड़कियां है ,लेन देन की वजह ही विवाद का कारण है, जिन्हें जन से संपर्क करना है वों पत्रकारों से संपर्क से संपर्क नही बना पा रहे ,खुद तथाकथितो को पत्रकार बनातें है फिर पत्रकारों से ही उलझते हैं ,मान्यता प्राप्त पत्रकारों की सूची खुद ही बनाते हैं ,फिर गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों को अपने सिर पर बिठाते हैं, जब सारे निर्णय आपके तो फिर ये भर्राशाही क्यों ? किस अधिकार से आपनें कानून हाथ में लिया? क्यों आपनें हाथापाई की, क्या सुशासन वाले सरकार की छवि आपने ख़राब नहीं की ?  यदि विवाद हो रहा था तो पुलिस बुलवा लेते खुद को सिंघम बनने की क्या जरूरत थी ? पत्रकार संगठनो कों मौन रहना है क्योकि अस्मिता से बड़ा विज्ञापन है ,भ्रष्टाचार में अकांठ डूबे लोगों की ये कुंठा है, ये इसलिए ही अब ----------------------------जनसंपर्क बना कर { हाथ } संपर्क है 

चोखेलाल

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मुखिया के मुखारी व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल की टिप्पणी








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