रायगढ़ : विजयपुर की सरकारी जमीन खसरा नंबर 4 अभी कई राज उगलने वाला है। 18 लोगों को जमीनें आवंटित की गई थी जो अब 36 टुकड़ों में बंट गई है। सारे नियम मालूम होते हुए भी पटवारी जमीनें बिकवाते रहे और तहसीलदार नामांतरण करते रहे। 12 लोगों के नाम अब भी आवंटन जमीनों में दर्ज हैं। इनके नामांतरण निरस्त करने के पूर्व मंथन चल रहा है। सरकारी जमीनों की बिक्री का खेल समय पर नहीं रोका गया जिसका नतीजा यह है कि अब शहर में एक भी जगह पर रोड किनारे एक एकड़ जमीन भी नहीं है। विजयपुर में खसरा नंबर 4 में से 18 लोगों को जमीन आवंटित की गई थी। इसमें से खनं 4/6 के सात टुकड़ों में नामांतरण तो निरस्त कर दिया गया लेकिन बाकी खनं की कहानी बची हुई है।
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इसमें 12 टुकड़े अभी भी क्रेताओं के नाम पर दर्ज हैं। खनं 4/10/ख नोरवेट कुजूर, फिलोमिना कुजूर खनं 4/12, 4/14, अभिषेक सिंह पिता अजय कुमार सिंह खनं 4/13, तुलसी राम पिता हीरालाल खनं 4/15, विलियम कुजूर पिता सिरिल कुजूर खनं 4/16, पॉलिमर कुजूर पति जोसेफ खनं 4/18/ख, सोहन पिता भुजकुराम खनं 4/18/ग, बृजमोहन पिता भागीरथी 4/18/ड, नारायण सिंह, मोहन सिंह, मोनिका खनं 4/18/च, शोभनाथ खनं 4/18/छ, नीरा सिंह पिता पृथ्वीपाल सिंह 4/19, भूकसाय पिता मयाराम 4/22 ने जमीनें बिना अनुमति के खरीदी हैं। यह भी संभव है कि जमीन गिरवी रखकर लोन लिया गया होगा। कुछ मूल आवंटियों ने जमीन का कुछ हिस्सा अपने पास रखा है।
कैसे होगी जमीन सरकार की
सरकार ने जिस प्रयोजन के लिए भूमिहीनों को जमीन दी थी, वह पूरा नहीं हुआ। 1973-74 में आवंटित भूमि का विक्रय 1987 में ही प्रारंभ हो गया। इसके बाद 1990, 1995, 2000, 2002, 2024 में भी जमीन का विक्रय किया गया। जांच रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई को लेकर प्रशासन मंथन कर रहा है। दरअसल शासकीय पट्टे की जमीन अवैध रूप से बेचने पर सरकार को वह भूमि पुन: शासन के खाते में लेने का प्रावधान है।
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