परमेश्वर राजपूत, गरियाबंद / छुरा : दीपावली पर्व के अवसर पर छुरा अंचल के गांवों में पारंपरिक लोक संस्कृति की झलक देखने को मिल रही है। पर्व की खुशियों के साथ गांव की युवतियां और महिलाएं सजे-धजे परिधानों में समूह बनाकर सुआ नृत्य करते हुए घर-घर घूम रही हैं। ढोलक-मंजीरे की थाप और मधुर लोकधुनों से पूरा गांव गुंजायमान हो उठा है।
छत्तीसगढ़ की लोक परंपरा में सुआ नृत्य का विशेष महत्व है। दीपावली के अवसर पर यह नृत्य फसल कटाई के बाद समृद्धि और खुशहाली के प्रतीक के रूप में किया जाता है। छुरा अंचल के ग्राम रसेला, छुरा, कनसिंघी,रुवाड़,कुड़ेरादादर, हीराबतर और आसपास के गांवों में महिलाओं ने पारंपरिक परिधान पहनकर सिर पर सुआ (मिट्टी का तोता) रखकर गीत गाए — “सुआ रे सुआ...” की स्वर लहरियों ने पूरे गांव के माहौल को सांस्कृतिक रंगों से भर दिया।
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संध्या समय दीपों की जगमगाहट के बीच महिलाएं और युवतियां सुआ नृत्य प्रस्तुत करते हुए मंगल गीत गा रही हैं। ग्रामीण परिवार भी इस अवसर पर उत्साहपूर्वक नृत्य दलों का स्वागत कर उन्हें मिठाइयाँ और दक्षिणा भेंट कर रहे हैं।
स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि यह लोकनृत्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ी संस्कृति की आत्मा है, जो पीढ़ियों से गांवों की सामाजिक एकता, सौहार्द और परंपरा को जीवित रखे हुए है। दीपावली पर्व पर सुआ नृत्य के माध्यम से महिलाएं प्रकृति, फसल और देवी-देवताओं के प्रति आभार प्रकट करती हैं।
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