परमेश्वर राजपूत, गरियाबंद / छुरा : देश की आम जनता लगातार बढ़ती महँगाई से परेशान है। रोज़मर्रा की जरूरत की चीज़ों के दाम जहां कभी अचानक बढ़ जाते हैं, वहीं कुछ महीनों में गिरावट भी देखने को मिलती है। महँगाई पर नियंत्रण की सरकारी कोशिशों के बीच अब सवाल यह उठ रहा है कि जनता को स्थायी राहत कैसे मिले?हाल ही में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सितंबर 2025 में खुदरा महँगाई दर (CPI) घटकर 1.54 प्रतिशत पर आ गई है — यह पिछले आठ वर्षों का सबसे निचला स्तर माना जा रहा है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह राहत अस्थायी हो सकती है क्योंकि खाद्य और ईंधन की कीमतों में फिर बढ़ोतरी की संभावना बनी हुई है।
पिछले 15 वर्षों में महँगाई का रुख
पिछले पंद्रह सालों में देश ने कई बार महँगाई की ऊँचाइयाँ देखी हैं। वर्ष 2013 में खुदरा महँगाई लगभग 12 प्रतिशत के पार पहुंची थी। 2014 के बाद यह कुछ वर्षों तक घटती रही, लेकिन कोरोना काल (2020-22) में फिर से तेज़ी से बढ़ी और 2022 में 6 से 7 प्रतिशत तक पहुँच गई। अब 2025 में यह न्यूनतम स्तर पर है, लेकिन आम लोगों को जरूरी वस्तुओं के दामों में स्थायी राहत अभी भी महसूस नहीं हो रही है।
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‘फ्री’ योजनाएँ — राहत या भविष्य का बोझ?
सरकार की मुफ्त राशन, गैस, बिजली और अन्य सामाजिक योजनाएँ आम जनता के लिए राहत का बड़ा माध्यम बनी हैं। गरीब तबके को इससे सीधा फायदा मिला है, लेकिन अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर ये योजनाएँ लक्षित (Targeted) न हों तो सरकारी खज़ाने पर भारी बोझ डाल सकती हैं। दरअसल, ऐसी योजनाएँ सरकार के खर्च को बढ़ाती हैं। यदि उनका वित्तपोषण करों या कर्ज से किया जाता है, तो इसका असर अंततः महँगाई या वित्तीय घाटे पर पड़ता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, “फ्री योजनाएँ तब तक लाभकारी हैं जब तक वे सीमित और ज़रूरतमंदों तक सीमित हों। परंतु अनियंत्रित विस्तार दीर्घकाल में अर्थव्यवस्था पर दबाव डाल सकता है।”
भारत पर कितना कर्ज़?
भारत सरकार पर कुल देनदारी (आंतरिक और बाहरी दोनों) मार्च 2025 तक लगभग ₹181.74 लाख करोड़ थी, जो अगले वित्तीय वर्ष में बढ़कर ₹196.79 लाख करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है। वहीं, विश्व बैंक के प्रति भारत का बकाया ऋण लगभग 24.6 अरब अमेरिकी डॉलर बताया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था बड़ी है, इसलिए यह कर्ज़ अनुपात (GDP के मुकाबले) अभी नियंत्रण में है। लेकिन अगर खर्च और फ्री योजनाओं का दायरा बढ़ता रहा, तो आने वाले वर्षों में ब्याज भुगतान और घाटा नियंत्रण चुनौती बन सकता है।
क्या फ्री योजनाओं से बढ़ेगी महँगाई?
महँगाई पर असर इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार इन योजनाओं को किस तरह फंड कर रही है।
अगर सरकार कर बढ़ाकर खर्च करती है तो मांग घट सकती है और महँगाई कम रहेगी।
परंतु अगर सरकार कर्ज़ या नोट छापकर योजनाओं को चलाती है, तो लंबे समय में महँगाई बढ़ सकती है।
आर्थिक जानकारों का मानना है कि योजनाओं की दिशा उत्पादक निवेश (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएँ) की ओर होनी चाहिए, ताकि ये देश की उत्पादन क्षमता बढ़ाएँ और महँगाई पर स्थायी नियंत्रण रखा जा सके।
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महँगाई और राहत — संतुलन की ज़रूरत
वर्तमान में भारत सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) दोनों ही मुद्रास्फीति और विकास के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश में हैं। RBI ब्याज दरों को स्थिर रखकर बाज़ार की मांग नियंत्रित करने की नीति पर चल रहा है, वहीं केंद्र सरकार महँगाई से राहत देने के लिए योजनाओं को लक्षित कर रही है।अर्थशास्त्रियों की राय में देश को चाहिए कि फ्री योजनाओं को समयबद्ध और पारदर्शी बनाया जाए। साथ ही राजस्व बढ़ाने के नए स्रोत, खर्च में दक्षता और उत्पादक निवेश पर ज़ोर दिया जाए, ताकि जनता को राहत के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की नींव भी मजबूत हो।
निष्कर्ष
महँगाई हर नागरिक के जीवन को प्रभावित करती है। राहत के लिए सरकार की योजनाएँ जरूरी हैं, परंतु उनके वित्तीय असर पर सतर्क रहना भी उतना ही आवश्यक है। जरूरत है ऐसी नीतियों की जो जन-हित और आर्थिक संतुलन दोनों को साध सकें — ताकि आने वाले वर्षों में महँगाई पर स्थायी नियंत्रण और जनता को वास्तविक राहत मिल सके।



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