दिल्ली पुलिस ने 2020 के दिल्ली दंगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक सनसनीखेज हलफनामा दायर किया है। पुलिस के द्वारा दायर इस हलफनामे में कहा गया है कि ये दंगे सिर्फ कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं, बल्कि ‘रिजीम चेंज ऑपरेशन’ यानी कि शासन को बदलने या कहे कि सरकार को बदलने के लिए चलाया गया एक ऑपरेशन था।यह बड़ा दावा दंगों की प्रकृति या कहें नियत और उसके पीछे के मकसद पर गंभीर सवाल खड़े करता है। पुलिस ने इस हलफनामे के जरिए उमर खालिद और शरजील इमाम समेत कई आरोपियों की जमानत का कड़ा विरोध किया है।
पुलिस ने अपने हलफनामे में स्पष्ट किया है कि यह हिंसा अचानक भड़के दंगे नहीं थे, बल्कि भारत की शांति और अंतरराष्ट्रीय छवि को धूमिल और अस्थिर करने की एक सोची-समझी रणनीतिक रूप से बनाई गई कोशिश थी। पुलिस के मुताबिक, जांचकर्ताओं ने आरोपियों को ‘सांप्रदायिक आधार पर रची गई एक गहरी साजिश’ से जोड़ने वाले पक्के सबूत जुटाए हैं। इन सबूतों में प्रत्यक्ष, दस्तावेजी और तकनीकी साक्ष्य शामिल हैं। यह हलफनामा दंगों की जांच को एक नई और गंभीर दिशा दे सकता है।
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भारत की संप्रभुता पर हमला करने की साजिश
हलफनामे में दावा किया गया है कि इस अशांति को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) के खिलाफ असहमति को हथियार बनाकर रचा गया था। पुलिस का कहना है कि यह ‘भारत की संप्रभुता और अखंडता पर हमला करने के लिए’ किया गया था। पुलिस ने यह भी आरोप लगाया कि CAA को एक मुस्लिम विरोधी कानून के तौर पर पेश करके अशांति फैलाने का मकसद था। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि यह साजिश अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के वक्त जानबूझकर की गई थी, ताकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान भी खींचा जा सके और देश की छवि खराब की जा सके।
ऐसे गंभीर अपराध में ‘बेल नहीं, जेल ही नियम है’
दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद, शरजील इमाम, मीरान हैदर और गुलफिशा फातिमा की जमानत का कड़ा विरोध किया है। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) का हवाला देते हुए, पुलिस का कहना है कि ऐसे गंभीर आतंकवाद से जुड़े अपराधों के लिए ‘बेल नहीं, जेल नहीं’ ही नियम है। पुलिस ने यह भी आरोप लगाया है कि आरोपी खुद ट्रायल में जानबूझकर देरी कर रहे हैं।
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हलफनामे में कहा गया कि आरोपियों ने ‘बेवजह की अर्जियों’ और ‘तालमेल वाले असहयोग’ के जरिए निचली अदालत को आरोप तय करने और ट्रायल शुरू करने से रोकने के लिए ‘प्रक्रिया का खुलेआम दुरुपयोग’ किया। पुलिस ने गवाहों की एक बड़ी लिस्ट के दावों को खारिज करते हुए साफ किया कि केवल 100-150 गवाह ही जरूरी हैं और अगर आरोपी सहयोग करें तो ट्रायल जल्दी खत्म किया जा सकता है।



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