किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य से पहले स्वस्तिक का चिह्न जरूरी रूप से बनाया जाता है। ऐसा करने से उस कार्य में किसी तरह की बाधा नहीं आती और उसकी शुभता और भी बढ़ जाती है। स्वस्तिक (Swastik Mistake) बनाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है, तभी आपको इसका पूर्ण लाभ मिल सकता है। ऐसे में चलिए जानते हैं स्वस्तिक से जुड़े कुछ जरूरी नियम।
स्वस्तिक का महत्व
स्वस्तिक को समृद्धि, सौभाग्य और कल्याण के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। ऋग्वेद के अनुसार, स्वस्तिक चिह्न (religious symbol guide) को सूर्य का प्रतीक माना गया है और इसकी चार भुजाएं को चार दिशाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। साथ ही इसे एक मंगलकारी व कल्याणकारी चिह्न के रूप में भी देखा जाता है। यही कारण है कि किसी भी धार्मिक कार्य में इस चिह्न की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। माना जाता है कि स्वस्तिक का चिह्न बनाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ता है और आपके उस कार्य के सिद्ध होने की संभावना बढ़ जाती है।
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कहां बनाएं स्वस्तिक
स्वस्तिक बनाने के लिए सबसे पहले इसका दायां भाग बनाएं और इसके बाद बायां भाग बनाएं। इसी के साथ आप घर में अष्टधातु या तांबे से बना स्वस्तिक का चिह्न भी लगा सकते हैं, जो काफी शुभ माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व को स्वस्तिक बनाना चाहिए, इससे आपको उत्तम परिणाम मिलने लगते हैं। इसके अलावा आप उत्तर दिशा में भी यह चिह्न बना सकते हैं, जो काफी लाभदायक माना गया है।
वास्तु के अनुसार, पूजा स्थल व मुख्य द्वार पर स्वस्तिक का चिह्न बनाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और सुख-समृद्धि का माहौल बना रहता है। इन सभी बातों का ध्यान रखने से जीवन में सौभाग्य आकर्षित होता है और वास्तु दोष से भी राहत मिलती है।
इन गलतियों से बचें
हमेशा स्नान के बाद हमेशा साफ हाथों से ही स्वस्तिक बनाना चाहिए। साथ ही इसे कभी भी उल्टा (Swastik errors) न बनाएं और न ही स्वस्तिक को बनाते समय रेखाओं को बीच से क्रॉस करें। साथ ही टेढ़ा-मेढ़ा बना हुआ स्वास्तिक भी शुभ नहीं माना जाता। इसे बनाते समय हमेशा चंदन, कुमकुम या सिंदूर का ही उपयोग करें। स्वस्तिक बनाते समय हमेशा मन में सकारात्मक भाव रखें।



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