कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी नगरी यानी बनारस में देव दीपावली का भव्य पर्व मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन देवता खुद पृथ्वी पर उतरते हैं और गंगा मां की आरती करते हैं. इस दौरान गंगा तटों पर लाखों दीपों की रोशनी से पूरा बनारस भव्य दिखाई देता है.देव दीपावली केवल दीपों का त्योहार नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश की विजय और अहंकार पर भक्ति की जीत का प्रतीक है. यह पर्व हमें सिखाता है कि जब जीवन में श्रद्धा और सेवा का दीप जलता है तभी सच्चा प्रकाश पर्व होता है.
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देव दीपावली को देव दिवाली भी कहा जाता है. यह पर्व भगवान शिव की त्रिपुरासुर नामक दैत्य पर विजय को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है. इसलिए देव दीपावली उत्सव को त्रिपुरोत्सव अथवा त्रिपुरारी पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है, जो कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर मनाई जाती है. वहीं, देव दिवाली मनाने को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति है क्योंकि पूर्णिमा तिथि 4 नवंबर से शुरू हो रही है.
गंगा स्नान और दान से मिलता है सौ गुना फल:- देव दिवाली पर भक्त कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन गंगा में पवित्र डुबकी लगाते हैं और शाम के समय मिट्टी के दीप प्रज्ज्वलित करते हैं. शाम के समय गंगा के तट लाखों मिट्टी के दीयों से जगमगा उठते हैं. यही नहीं, बनारस में गंगा घाट के अलावा सभी मंदिरों में भी देव दिवाली मनाई जाती है. मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है. इस दिन किया गया गंगा स्नान और दान सौ गुना फलदाई होता है. जो व्यक्ति इस दिन गंगा में दीप प्रवाहित करता है, उसे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है.



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