हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। यह पर्व हर वर्ष देवउठनी एकादशी या द्वादशी तिथि को मनाया जाता है, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और सृष्टि में पुनः शुभता और सौभाग्य का संचार होता है। तुलसी विवाह को माता तुलसी (देवी लक्ष्मी का रूप) और भगवान विष्णु (शालिग्राम स्वरूप) के पवित्र मिलन का प्रतीक माना गया है। इस दिन घर पर तुलसी विवाह करना अत्यंत शुभ और पुण्यकारी माना गया है, क्योंकि यह अनुष्ठान कन्यादान के समान फल प्रदान करता है। इस बार तुलसी विवाह का पर्व 02 नवंबर को मनाया जाएगा।
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तुलसी विवाह की तैयारी
तुलसी विवाह की तैयारी अत्यंत श्रद्धा और पवित्रता के साथ की जाती है। विवाह से एक दिन पहले तुलसी के पौधे को स्नान कर स्वच्छ किया जाता है और अगली सुबह उसे वधू के रूप में सजाया जाता है। तुलसी माता को चुनरी, फूल, गहनों, बिंदी और नारियल से अलंकृत किया जाता है, जिससे उनका रूप देवी लक्ष्मी जैसा प्रतीत होता है। विवाह के लिए आवश्यक सामग्री में भगवान शालिग्राम या विष्णु प्रतिमा, दीपक, फूल, चावल, तुलसी दल, गंध, धूप, मिठाई और पंचामृत शामिल होते हैं। यह तैयारी भक्तों के मन में भक्ति, प्रेम और शुभता का भाव जगाती है।
विवाह की प्रक्रिया
आध्यात्मिक महत्व
घर पर तुलसी विवाह करवाने से जीवन में पवित्रता, भक्ति और शुभता का संचार होता है। यह अनुष्ठान केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत फलदायी माना गया है। माना जाता है कि जो भक्त तुलसी विवाह श्रद्धा से करते हैं, उनके परिवार में सौभाग्य, समृद्धि, शांति और आपसी प्रेम बना रहता है। जिनके जीवन में विवाह में देरी या वैवाहिक कलह हो, उनके लिए यह विशेष रूप से शुभ माना गया है। तुलसी विवाह आत्मा और भक्ति के मिलन का प्रतीक है, जो व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति और दांपत्य जीवन में संतुलन प्रदान करता है।



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