नई दिल्ली. भारतीय बैंकिंग सेक्टर आज एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है. जहां एक ओर सरकारी यानी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक धीरे-धीरे टेक्नोलॉजी और डिजिटल सेवाओं की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं निजी बैंक अपने तेज़ प्रोसेस और कस्टमर एक्सपीरियंस के दम पर नई ऊंचाइयां छू रहे हैं. भारत की अर्थव्यवस्था की रफ्तार अब इन दोनों सेक्टरों के बैलेंस पर टिकी हुई है.
अगर आप सोच रहे हैं कि आखिर कौन आगे है सरकारी बैंक या निजी बैंक तो आइए जानते हैं कि भारतीय बैंकिंग सेक्टर का यह संतुलन कैसे बदल रहा है और इसमें आगे कौन बढ़त बना रहा है.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक: भरोसे का पुराना नाम
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक यानी जिनमें सरकार की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से ज्यादा होती है, लंबे समय से भारत की आर्थिक रीढ़ माने जाते हैं. भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India), पंजाब नेशनल बैंक (Punjab National Bank), बैंक ऑफ बड़ौदा (Bank of Baroda) जैसे संस्थान गांव-गांव तक पहुंच बनाए हुए हैं.
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इन बैंकों की सबसे बड़ी ताकत है जनता का भरोसा और सरकारी समर्थन. इनका फोकस हमेशा से फाइनेंशियल इनक्लूजन यानी हर व्यक्ति तक बैंकिंग सेवा पहुंचाने पर रहा है. जनधन योजना और किसान क्रेडिट कार्ड जैसी स्कीम्स ने इन्हें आम लोगों के बीच सबसे लोकप्रिय बनाया है.
निजी बैंक: टेक्नोलॉजी और एफिशिएंसी का दूसरा नाम
दूसरी तरफ निजी क्षेत्र के बैंक जैसे एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank), आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank) और एक्सिस बैंक (Axis Bank) अपने डिजिटल सर्विसेज, क्विक लोन प्रोसेस और स्मार्ट ऐप बैंकिंग के लिए जाने जाते हैं. इन बैंकों ने टेक्नोलॉजी के जरिए ग्राहक अनुभव को पूरी तरह बदल दिया है. पिछले कुछ वर्षों में निजी बैंकों की प्रॉफिटेबिलिटी और कस्टमर बेस दोनों में तेजी से वृद्धि हुई है. युवाओं और शहरी आबादी में इनका भरोसा लगातार बढ़ा है, क्योंकि ये पेपरलेस ट्रांजैक्शन और तेज फैसले लेने में माहिर हैं.
पब्लिक बनाम प्राइवेट: किसकी ग्रोथ आगे
अगर आंकड़ों की बात करें तो निजी बैंकों की बैलेंस शीट और नेट प्रॉफिट ग्रोथ, दोनों में बढ़त बनी हुई है. वहीं सार्वजनिक बैंकों ने एनपीए (Non-Performing Assets) को घटाने और डिजिटल सर्विसेज बढ़ाने में हाल के सालों में बड़ा सुधार किया है.
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुसार, प्राइवेट बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ लगभग 18 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है, जबकि पब्लिक बैंकों में यह करीब 12 प्रतिशत के आसपास है. हालांकि सरकारी बैंकों का रूरल नेटवर्क और लो-इंटरस्ट स्कीम्स अभी भी उनकी सबसे बड़ी ताकत हैं.
भविष्य की दिशा: सहयोग या प्रतिस्पर्धा?
आने वाले समय में भारतीय बैंकिंग सेक्टर पूरी तरह से डिजिटल और ग्राहक-केंद्रित होने जा रहा है. ऐसे में सार्वजनिक और निजी दोनों बैंकों को एक-दूसरे की खूबियों से सीखने की जरूरत होगी. सरकारी बैंकों को टेक्नोलॉजी अपनानी होगी और निजी बैंकों को ग्रामीण कनेक्ट को समझना होगा.



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