रायगढ़: भारत में ऊर्जा जरूरतों के तेजी से बढ़ते दायरे को देखते हुए कोयला उत्पादन की आवश्यकता लगातार बढ़ रही है। लेकिन, इस आवश्यकता के साथ-साथ पर्यावरण और स्थानीय समुदायों की चिंताएँ भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। इन्हीं दोनों के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए कोयला मंत्रालय ने भूमिगत खनन (अंडरग्राउंड माइनिंग) को बढ़ावा देने की दिशा में कदम बढ़ाया है। यह तकनीक न केवल पर्यावरणीय रूप से स्वच्छ है, बल्कि ग्रामीणों की आजीविका और वनोपज जैसे संसाधनों को भी सुरक्षित रखती है।
ऊपरी सतह और वन क्षेत्र को नुकसान नहीं
स्थानीय निवासियों के बीच अक्सर यह आशंका रहती है कि खनन के कारण जंगल खत्म हो जाएँगे, महुआ और अन्य वनोपज घट जाएँगे, या हाथियों की आवाजाही प्रभावित होगी। लेकिन, विशेषज्ञों का कहना है कि भूमिगत खनन इन चिंताओं से पूरी तरह मुक्त है।
ये भी पढ़े : मुखिया के मुखारी -भारत माँ के रतन बेटा मै बढ़िया -में छत्तीसगढ़िया अऊँगा
यह प्रक्रिया ज़मीन के नीचे 500 से 2000 फीट की गहराई में होती है, जिससे ऊपरी सतह पर किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता।
वन क्षेत्र और जैव विविधता पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता।
ग्रामीणों को विस्थापित भी नहीं होना पड़ता है, जिससे उनका सामाजिक और सांस्कृतिक ताना-बाना सुरक्षित रहता है।कृषि भूमि भी यथावत और वनोपज सुरक्षित
वनोपज संग्रहण और कृषि भूमि की दृष्टि से भी यह प्रक्रिया पूरी तरह सुरक्षित है।
भूमिगत खनन में भूमि की ऊपरी सतह पर किसी प्रकार की कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती है, जिससे महुआ, तेंदू पत्ता और अन्य वनोपजों का प्राकृतिक चक्र प्रभावित नहीं होता।कृषि भूमि यथावत बनी रहती है और किसानों की परंपरागत खेती पर कोई असर नहीं पड़ता।
1000 से अधिक लोगों को मिलेगा रोजगार
ग्रामीण विकास और रोजगार सृजन के नजरिए से देखें, तो भूमिगत खनन का सीधा सकारात्मक असर दिखाई देता है।इस प्रक्रिया से 1000 से अधिक कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे।कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के तहत ग्राम पंचायतों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और अन्य बुनियादी सुविधाओं के विकास को भी प्राथमिकता दी जाएगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में भूमिगत खदानों से उत्पादन बढ़ने पर खुले खनन (ओपन कास्ट माइनिंग) की आवश्यकता कम होगी।
इससे भूमि विस्थापन जैसी समस्याएँ घटेंगी और पर्यावरणीय क्षति भी काफी हद तक रोकी जा सकेगी।साथ ही, यह पहल भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं के अनुरूप एक दीर्घकालिक समाधान साबित हो सकती है, जो ऊर्जा आत्मनिर्भरता और सतत विकास दोनों को एक साथ आगे बढ़ाती है।
भूमिगत कोयला खनन न केवल भारत की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करेगा, बल्कि यह ग्रामीण भारत के विश्वास, जीवन और पर्यावरणीय संतुलन को भी मजबूती से संजोए रखेगा। यही इस नई खनन नीति की असली ताकत भी है: विकास भी और संरक्षण भी।



Comments