दस साल से लंबित,चंद्रहासिनी राईस मिल से वसूली करना भूले, साढ़े तीन करोड़ की देनदारी

दस साल से लंबित,चंद्रहासिनी राईस मिल से वसूली करना भूले, साढ़े तीन करोड़ की देनदारी

रायगढ़ :  कोई राइस मिलर दस साल पहले डेढ़ करोड़ का गबन कर लेता है और कोई विभाग उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। पुलिस में दर्ज एफआईआर को सही साबित करने के लिए विभाग दस्तावेज तक प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं। यह केस बताता है कि यदि को विभाग किसी को बचाना चाहे तो हजार रास्ते निकाले जा सकते हैं। चंद्रहासिनी राइस मिल टपरदा का मामला ऐसा ही है।कस्टम मिलिंग व्यवस्था में शासन को किस तरह नुकसान पहुंचाया जाता है, इसका उदाहरण मां चंद्रहासिनी राइस मिल वाला केस है। वर्ष 12-13 में राइस का पंजीयन धान उठाव के लिए किया गया। मार्कफेड ने 30 हजार क्विंटल का एग्रीमेंट किया था। मिल संचालक दिनेश जांगड़े ने 27998.25 क्विं. धान उठाव किया था। इसके बदले में 18758.82 क्विं. चावल जमा करना था लेकिन 11000.97 क्विं. चावल ही जमा किया गया।

शेष 7757.85 क्विं. चावल जमा नहीं किया गया तो एसडीएम, डीएमओ, खाद्य विभाग आदि ने मिल में जांच की। जांच के समय भी संचालक उपस्थित नहीं हुआ। जांच में मात्र 180 क्विं. धान, 20 क्विं. चावल और 5 क्विं. कनकी जब्त किया गया। तत्कालीन डीएमओ ने मिल संचालक को 1,86,86,954 रुपए वसूली का नोटिस दिया। बैंक गारंटी और एफडीआर से मात्र 42 लाख रुपए वसूली की जा सकी। शेष 1,44,51,742 रुपए वसूली नहीं हो पाने पर पुसौर थाने में एफआईआर दर्ज करवाई गई। इसके बाद अदालत में शासन की ओर से गबन को प्रमाणित ही नहीं किया जा सका। हद तो तब हो गई जब अदालत ने दस्तावेजों की कमी और प्रमाण प्रस्तुत नहीं करने के कारण धारा 420, 409 से मिल संचालक को दोषमुक्त कर दिया। इस मामले से साबित हुआ कि शासन की ओर से ही लापरवाही हुई। अब यह 1,44,51,742 करोड़ रुपए 12 सालों में ब्याज सहित 3,52,62,250 रुपए हो चुके हैं। जिला प्रशासन ने शासन की राशि रिकवरी के लिए कोई प्रयास ही नहीं किए।

ये भी पढ़े  : मुखिया के मुखारी - मान किसी का न टूटे, सम्मान सबका बना रहे

सरकारी धान गबन करने वाले को बचाया

इस केस की सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि मिल को जारी डीओ, समिति से धान उठाव आदि के दस्तावेज ही प्रस्तुत नहीं किए गए। कई गवाह अदालत में बयान से पलट गए। यहां तक कि तत्कालीन एसडीएम ने कह दिया कि वे जांच के समय अंदर गए ही नहीं। केस को कमजोर कर दिया गया ताकि मिल संचालक आसानी से बच जाए। सरकारी धान का गबन करने वाले का दोष तक प्रमाणित नहीं किया जा सका। आवश्यक वस्तु अधिनियम को भी प्रमाणित करने में नाकाम रहे। अदालत ने मिल संचालक के पक्ष में आदेश पारित किया। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी रायगढ़ के आदेश पर अपील को खारिज करते हुए तृतीय अपर सत्र न्यायाधीश ने भी पुराना आदेश बरकरार रखा।

पुलिस और मार्कफेड की कार्रवाई अलग-अलग

मां चंद्रहासिनी राइस मिल टपरदा संचालक दिनेश जांगड़े ने धान उठाव तो किया लेकिन चावल जमा नहीं किया। जिस धान का पेमेंट सरकार ने किसान को किया, उसका गबन हो गया। पुलिस ने धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया लेकिन रिकवरी मार्कफेड और खाद्य विभाग को करनी थी। यह भी संदेहास्पद है कि मात्र 42 लाख की बैंक गांरटी पर करीब दो करोड़ का चावल गबन कर लिया गया। इसकी देनदारी बढ़ती जा रही है लेकिन जिला स्तर पर किसी को कोई सरोकार ही नहीं है। अदालत ने रिकवरी पर रोक नहीं लगाई है।









You can share this post!


Click the button below to join us / हमसे जुड़ने के लिए नीचें दिए लिंक को क्लीक करे


Related News



Comments

  • No Comments...

Leave Comments