बोनसाईयों को पेड़ बनने की चाहत है ताकि वों छत्तीसगढ़ के हीरा पन्ना बन जाएं ,पर क्या किसी बोनसाई में इतना सामर्थ्य है कि वों बरगद जैसी छाव और शीतलता दे सके, बोनसाईयों की यही चाहत उन्हें आहत करेगी,छत्तीसगढ़ में भी बहुतों को इसी चाहत का रोग लग गया है, दंभ इतना है की छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ियों पर सीधे तंज किए जा रहे ,तल्ख़ टिप्पणियों ने सामंजस्य के द्वार बंद कर दिए है, रोज पुरुषार्थी वीडियों जारी कर रहे ,सवाल कर्ता महिलाएं भी हैं ,चौक चौराहों पे विरोध प्रदर्शन हो रहे ,बातों की सिकंदरी हो रही है, पुरुषार्थियों आपसे एक ही सवाल है, जब सबकुछ ठीक था तो आप प्रवासी क्यों बनें? सवालों से तल्खी अब मिटाई जा नही सकती क्योंकि इसकी शुरुआत हो चुकी है, कोई अपना स्वर्णिम इतिहास ,स्वर्णिम भूमि छोड़कर बेवजह छत्तीसगढ़ क्यों आया होगा ? कोई तो वजह होगी इसकी ? यदि आपकी माटी में सबकुछ था तो वों कौन सा कुछ था जिसे आप ढूंढने छत्तीसगढ़ आए? क्या आपने सबकुछ छत्तीसगढ़ का अंगीकार कर लिया ? या कुछ करके सब छोड़ दिया? जो यूपी बिहार से आयें हैं वों बताये की जिनके यहां "भूरा बाल " साफ करो तिलक ,तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार के नारे क्यों गढ़े गए ?
जाति की राजनीति ,माफियाओं से सरकार की निकटता क्यों होती थी? इन्ही अव्यवस्थाओं से दो चार हो आप रोजगार की तलाश में छग आए और समृद्धशाली होते ही छग पर जातियता का आरोप मढ़ रहे, जातियता की वेदी पर संसाधनों का उपयोग आपने नही किया, जिनके पास गंगा का पानी था वों न प्रायश्चित किए ,बल्कि आज भी जाति की आग में जल रहे ,देश ही क्या विदेशों में भी प्रवासी बन रहे, राजस्थान की रूढ़िता सबको पता है ,जाति की खाईयां बालविवाह ,अजा ,अजजा अत्याचार की कमियां फिर भी यहां आकर बड़ाईयां, छेड़ेंगे तो छोड़ेंगे नही कहने वालों को तो देश का नक्शा बदलने का मौका मिला था ,पर आपने अपना स्थान बदल लिया, तब क्यों छेड़ने वालों को छोड़ दिया, या उस दर्द में छेड़ने का एहसास नहीं हुआ या संवेदनशीलता अब बढ़ गई है? छत्तीसगढ़ में प्रवासियों ने पहले भी अपना आशियाना बनाया पर वों छत्तीसगढ़ में पूरी तरह रच बस गए छत्तीसगढ़ी संस्कृति, परम्पराओं और शादियों में एक रूपता इसके प्रमाण हैं, जन्मभूमि की सिर्फ यादें हैं, पहचान पूरी कर्मभूमि की है ,छत्तीसगढ़ महतारी की कोख में जन्मे यही अटखेलियाँ की अंगड़ाई ली पर लड़ाई नही की ,प्रवास आवास के लिए नही पुरे मनोयोग से वास के लिए किया, इसलिए प्रादेशिक, भाषाई पहचान की जरूरत ही नही रही ,पीढ़ियों ने छत्तीसगढ़ को आत्मसात कर लिया ,छत्तीसगढ़ महतारी ने सम्मान ,समृद्धि ,पहचान सब दिया क्या आपने ऐसा किया?
सवाल देखिए आपके ,छत्तीसगढ़ भाषा निम्न स्तरीय है ,छत्तीसगढ़ियों को बोलने नही आता रमन सिंह ने मोबाईल दिया तो सिख गए, छत्तीसगढ़िया सिर्फ दारू में उलझे हैं ,महादेव सट्टा छत्तीसगढ़िया सट्टा है ,छत्तीसगढ़ में रहकर छत्तीसगढ़ी भाषा और छत्तीसगढ़ का अपमान क्यों? नशा नाश की जड़ है, ये कमजोरी है पर क्या आप सिर्फ गंगाजल पीतें हैं ,दोषरहित हैं ,महादेव सट्टा एप्प सिर्फ छत्तीसगढ़ियों का सट्टा है तो फिर अपराधियों की सूची निकालकर देख लीजिये उनमें कितनों का नाम आपके अपनों का है,अपराध और अपराधियों की जिस दिन इस मापदंड से गिनती हो गई उस दिन अपराध से संलिप्तता मुहं दिखाने के काबिल नही छोड़ेगी ,आप तो छत्तीसगढ़ियों को लड़ाई किनसे करनी है ये भी बता रहें हैं, इतिहास ही नही भविष्य को भी बिसरा रहें हैं, अपनी लड़ाई दूसरों के कंधो पर लाद रहें है, अपने बोनसाई होने का प्रमाण खुद दे रहें हैं, छत्तीसगढ़ की धरा पे सबकुछ आपने धर लिया पर छत्तीसगढ़ महतारी का मान नही धर रहे, छत्तीसगढ़िया तो कहलाना चाह रहे पर पुरानी पहचान नही छोड़ रहे, जनप्रतिनिधि तो बनना है पर छत्तीसगढ़ के जन को ही छोड़ रहे, चौक चौराहों ,सरोवरों पर नाम चाहिए अपना पर आराध्यों को भी अपने सामाजिक भवनों तक सीमित रखा है, कब अग्रसेन जयंती ,झुलेलाल जयंती या ,चेटीचंड में छत्तीसगढ़ियों को सम्मिलित किया है ,हमने तो कभी नही कहा की जैन मूर्तियों को चोरी कर पिघलाकर किन ने व्यवसाय किया है ? मीडिया भी जिनके हांथो में है उनकी पहचान क्या है ? उनका छत्तीसगढ़ से न कोई नाता न कोई वास्ता उनके व्यवसाय का एक हिस्सा है ,छत्तीसगढ़ियों को छत्तीसगढ़ के लिए, अपने लिए, अपनों के लिए ,ऐसे ही संघर्ष करना है ,फर्क मूल छत्तीसगढ़िया और बोनसाई छत्तीसगढ़िया में बड़ा हैं ----------------------बिना आत्मसात किए कैसे साथ छत्तीसगढ़ का मिलेगा
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल की टिप्पणी



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