राजनीति भी अजीब खेल है, जिनको सत्ता के लाले पड़े हैं वों लाल की ताजपोशी के लिए तरस रहें हैं, जो सजायाफ्ता हैं,भ्रष्टाचार के घोषित अपराधी हैं, चुनाव लड़ने के अयोग्य हैं ,वों राजनीतिक दल का संचालन ही नहीं कर रहे बल्कि कौन चुनाव लड़ेगा इसका भी निर्धारण कर रहे, उम्मीदवारी ही नहीं, मुख्यमंत्री का भी नाम तय कर रहे ,पत्नी के बाद लाल पे दांव खेल रहे ,एक लाल के लिए सत्ता तो दुसरे को घर बाहर कर एकता का संदेश दे रहे, जिनसे घर नही सम्भला बिहार सम्भलाने का दावा कर रहे, मनोनयन की राजनीति को लोकतंत्र का आधार बता रहे ,नकटे का नाक कटे तो सवा हाँथ की लम्बाई बढ़े, वाली थेथराई को लालू चरितार्थ कर रहे, जेपी आंदोलन की उपज फसल नहीं खरपतवार में तब्दील हो जाएगी किसने सोचा था ? लोहिया जी के वाक्य थे, समाजवादियों को संपत्ति और संतति के बारे में नहीं सोचना चाहिए पर अब समाजवादी होने की पहली शर्त है, संपत्ति और संतति के आगे कुछ नही सोचना चाहिए,लालू आधुनिक समाजवादी हैं, आधुनिक समाजवाद की नित नई परिभाषाएं लिख रहे हैं।
पलायन से जूझते बिहार में सिद्धांतों की राजनीति से पलायन के प्रणेता बन बैठे हैं, पांच भ्रष्टाचार के मामलों में 32 1/2 की सजा फिर भी बत्तीसी चमका राजनीति कर रहे,स्वास्थ्य ख़राब बता ऐश कर रहे, विवाह समारोह में उपस्थिति, नाती पोतों के साथ मस्ती कर रहे, उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में शायद उच्चतम भ्रष्टाचारियों के कृत्य नहीं आते ,आम भ्रष्टाचारी जेल में सड़ जाता, पूर्व मुख्यमंत्री केंद्रीय मंत्री हैं तो लाल को मुख्यमंत्री बनाने पर अड़े हैं, राजनीति ऐसी की राजा भी पानी भरे, जीवनभर जनसेवा के आलावा कुछ नहीं किया, पर शून्य संपत्ति से संपत्ति के शिखर तक पहुँच गए, आदर्श पति हैं पत्नी को रसोई से सीधे मुख्यमंत्री निवास पहुंचा दिए, शिक्षा का क्या है, तेजस्वी राबड़ी से ज्यादा पढ़ा है ,पांचवी और नौंवी में एक पीढ़ी का फासला है, गनीमत है बेटियों की तरह बेटों को डॉक्टर नहीं बनाया ,डॉक्टरी की टॉपर मीसा कैसी बनीं ये भी उनका कलुषित इतिहास है, एक जमाना था जब सब कुछ सालों की बिसात थी, जिनके आगे सरकार लाचार थी, अपराधी ,अपहरणकर्ता कानून को हांकते थे, भक्षक सारे रक्षक थे, सहाबुद्दीन ,तसलीमुद्दीन जैसे सांसद थे, जिलाधीश अपनी पत्नी की आबरू बचाने में अक्षम थे, गरीब गुरबा की सरकार में चरवाहा विद्यालय तो था पर लालू के बच्चे डीपीएस में पढ़ा करते थे, गनीमत है बेटी के दहेज़ के लिए कार और जेवर ही लुटा गया, दहेज में संसदीय क्षेत्र नहीं दिया।
सिंगापूर वासी बेटी से उपकृत लालू ने रोहणी को सारण से चुनाव लड़ा उपकार उतार दिया,गजब की राजनीति है जिसमें नीति नहीं राज ही राज हैं ,भूरे बाल साफ करो ,वोट कास्ट नही कास्ट को वोट करो कहने वाले लालू क्या सामाजिक समरसता के प्रतीक हैं ? या फिर धुर जातीय राजनीति के शिखर पुरुष हैं? एमवाय समीकरण के आगे सबकुछ बौना था इसलिए आज खुद बौने हो गए, महाकुंभ को फालतू कहतें ही खुद बिहार की राजनीति में बेटे समेत फालतू हो गए, बिहार को अपनी राजनीतिक चेतना पर बड़ा गुमान है ,पर क्या उसे इस जातीय राजनीति का भान है ,संसाधनों से भरा बिहार और सारे बिहारियों के हाँथ रीते के ही रीते, समृद्धि नही रोजगार की तलाश में भटकते दिन रात बीते, हुनर से जो समृद्धि मिली वों बिहार में क्यों नही मिली ? क्योंकि वहां जातियता पर अटके ,उनका पूरा परिवार सत्ता की मलाई खा रहा ,आम बिहारी अपने बिहार से जुदाई सह रहा, जिसके पास चपरासी बनने की शैक्षणिक योग्यता न हो वों सत्ता के शिखर का दावेदार ,आम बिहारी शैक्षणिक योग्यता लिए दर पर दर प्रदेश दर प्रदेश भटक रहा ,जिन बिहारियों को अपनी राजनीतिक समझ पर अभिमान है उन्हें नहीं अपने हितों का भान है, किस समझ से नौवी फेल आपका भाग्य विधाता बनेगा ? स्टेडियम में खेलने नहीं पानी पिलाने जाता था जो 22 गज की क्रिकेट पिच पर नहीं टिक पाया वों बिहार में कैसे टिक पायेगा? क्रिकेट का अनाड़ी क्या राजनीति का खिलाड़ी बन पायेगा ? या फिर पुराना वाला जंगल राज फिर दोहराएगा ? कदम उसी रास्ते बढ़ रहे चार्जशीट हो गया सजा के दिन शनैः शनैः करीब आ रहे, बाप पूत पराक्षित घोड़ा बहुतें नहीं तो थोड़ा -थोड़ा भगवान से लड़ के तो रावण और कंश भी नही बचे थे ,अधर्म का नाश ही होता है बिहार यदि राजनीति में जागरूक है तो लालू और लालू के लाल को समझना होगा क्योंकि लालू कह रहे ---------------------लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल...........
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल की टिप्पणी



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