रायगढ़ : केलो विहार को आवंटित भूमि पर किसी और व्यक्ति ने कब्जा करते हुए अपने परिजनों का नाम दर्ज करवा लिया था। एसडीएम न्यायालय ने जमीन को वापस शासकीय नजूल दर्ज करने का एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है। राजस्व न्यायालयों के लिए यह आदेश एक नजीर बनेगा। 14 मई 1991 को तत्कालीन कलेक्टर ने केलो विहार शासकीय कर्मचारी गृह निर्माण सहकारी संस्था को 25 एकड़ जमीन आवंटित की थी। बेलादुला की खनं 7 की 21.16 एकड़ और छोटे अतरमुड़ा में खनं 2 की 2.42 एकड़ व खनं 3 की 1.42 एकड़ कुल 25 एकड़ भूमि संस्था को मिली थी।
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इस पर ड्राइंग डिजाइन बनाकर प्लॉट आवंटित किए गए थे। लेकिन छोटे अतरमुड़ा की भूमि खनं 2 व 3 पर अतिक्रमण करते हुए अभिलेखों में स्व. बहादुर सिंह, समुंद बाई, माधुरी सिंह, राजेंद्र सिंह ठाकुर, संतोषी सिंह, शंकर सिंह राजपूत, पूर्णिमा सिंह, सरस्वती सिंह, एवं अंकिता सिंह का नाम दर्ज करवा लिया गया था। रायगढ़ के तत्कालीन तहसीलदार ने इनका नाम चढ़ाया था। इसके विरुद्ध 9 लोगों ने एसडीएम कोर्ट में अपील की थी। सिविल कोर्ट ने भी बहादुर सिंह द्वारा दायर वाद को खारिज कर दिया था जिसमें उसने जमीन पर मालिकाना हक जताया था। लेकिन आदेश की गलत व्याख्या कर जमीन बहादुर सिंह के वारिसान के नाम पर दर्ज कर दिया गया। अपीलार्थियों ने डिप्ी कमिश्नर लैंड रिफॉर्म मप्र शासन के 1951 के दस्तावेज भी प्रस्तुत किए।
शासन ने नजूल भूमि के रूप में किया था दर्ज
एसडीएम न्यायालय ने सभी दस्तावेजों का परीक्षण करने के बाद पाया कि बड़े अतरमुड़ा की खनं 3 की 2.46 एकड़ भूमि को शासन ने विधिवत तरीके से नजूल भूमि दर्ज की थी। इन दस्तावेजों में स्व.बहादुर सिंह के पिता स्व. जगमोहन सिंह के भी हस्ताक्षर हैं। इन तथ्यों को ध्यान दिए बिना ही तहसीलदार ने जमीन को बहादुर सिंह के वारिसानों के नाम पर चढ़ा दी। एसडीएम न्यायालय ने 14 जून 2024 को तत्कालीन तहसीलदार द्वारा जारी आदेश विधि विरुद्ध होने के कारण निरस्त कर दिया। खसरा नंबर 3 रकबा 2.46 एकड़ को पूर्ववत शासकीय नजूल भूमि के रूप में दर्ज किए जाने का आदेश दिया।

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