क्या पश्चिम बंगाल एक बार फिर धार्मिक राजनीति की आग में झोंक दिया गया है, या यह केवल एक साधारण कार्यक्रम था, या फिर... आगामी चुनावों की सबसे बड़ी राजनीतिक चाल?इन सवालों पर आज बंगाल से लेकर पूरा देश चर्चा कर रहा है, और यह बहस केवल दीवारों के अंदर ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया, राजनीतिक गलियारों और आम जनता के बीच भी फैल चुकी है।
ऐसे शुरू हुआ ये विवाद...
मुर्शिदाबाद में TMC के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर द्वारा बाबरी ढांचे की शैली में मस्जिद का शिलान्यास किया गया, वह भी ठीक 6 दिसंबर के दिन... जिसने पूरे राज्य की राजनीति को भीतर से हिलाकर रख दिया है। लाखों समर्थकों के बीच दिए गए नारे, चंदा इकट्ठा करने की तैयारियां और धार्मिक नेतृत्व की मौजूदगी ने इस कार्यक्रम को केवल एक धार्मिक पहल नहीं बल्कि एक 'राजनीतिक प्रदर्शन' का रूप दे दिया।
अब सवाल उठ रहा है कि यह बंगाल की राजनीति में नया मोड़ आने का संकेत या यह 2026 चुनावों से पहले धार्मिक ध्रुवीकरण की बिसात? वहीं, इसे लेकर भाजपा ने तो स्पष्ट कह दिया है "यदि बाबरी जैसा निर्माण होगा, तो हम विरोध करेंगे… चाहे जो हो।" यानी मामला केवल बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रहने वाला। भाजपा आंदोलन की तैयारी कर रही है, और ओर TMC चौतरफा दबाव में है। इस बीच अब कानून, प्रशासन और राज्य सरकार की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठना शुरू हो गए हैं। हाई कोर्ट ने सुरक्षा देने का आदेश तो दिया, लेकिन कार्यक्रम रोकने से इंकार कर दिया और इसी फैसले ने विवाद को और बढ़ा दिया है।
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सोशल मीडिया पर अब दो धड़े बन चुके हैं, एक पक्ष इसे 'धार्मिक अधिकार' बता रहा है तो दूसरा, इसे सोची-समझी राजनीतिक उकसाहट। लेकिन असली सवाल अभी भी हवा में है कि क्या यह बंगाल का नया 'राजनीतिक युद्धभूमि' बनने जा रहा है?
कैसे शुरू हुआ विवाद?
नवंबर महीने में ही विधायक हुमायूं कबीर ने सार्वजनिक मंच से घोषणा की थी कि वे 6 दिसंबर 2025 को अयोध्या में बाबरी ढांचे के गिरने की तारीख के ठीक 33 साल बाद नई मस्जिद की नींव रखेंगे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस कार्यक्रम में लगभग 2 लाख से ज़्यादा मुस्लिम समर्थक ईंटों के साथ शामिल हुए। इस दौरान जमकर नारे, चंदा संग्रह और स्थानीय मौलानाओं की मौजूदगी ने माहौल को और विवादास्पद बना दिया।
अदालत और प्रशासन की भूमिका पर खड़े हुए सवाल
इस मामले में जब याचिका हाई कोर्ट पहुंची तो अदालत ने राज्य सरकार को केवल सुरक्षा उपलब्ध कराने का ही आदेश दिया और कार्यक्रम पर रोक लगाने के लिए कहा यह "कानूनी आधार नहीं है।" इसके बाद आरोप लगे कि पुलिस प्रशासन पहले से कार्यक्रम में सहयोग कर रहा है, राज्य सरकार ने वक़्त रहते कार्रवाई नहीं की और अंतिम वक़्त में सिर्फ औपचारिकता के लिए 'निलंबन' किया गया।
इस मामले के बाद भाजपा आक्रामक मोड में
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने इसे 'संप्रदायिक राजनीति का चरम' बताते हुए कहा "यदि कोई बाबरी बनाएगा, तो हम फिर गिरा देंगे।" प्रदेश के नेता व केंद्रीय मंत्री भी इस मुद्दे को लेकर लगातार ममता बनर्जी सरकार पर हमला बोल रहे हैं।
ओवैसी फैक्टर भी बना चर्चा का बड़ा विषय
आपको बता दे, इस मुड़े को लेकर कई राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि हुमायूं कबीर की इस घोषणा के पीछे AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की संभावित रणनीति हो सकती है। इसके साथ ही यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि यह मुस्लिम वोटों की नई राजनीतिक इंजीनियरिंग हो सकती है, जो साल 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले बड़ा 'गेम चेंजर' साबित हो सकती है।
इस वक़्त बंगाल की राजनीति का समीकरण
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ममता बनर्जी सिर्फ मुस्लिम वोटों के दम पर सत्ता में नहीं हैं बल्कि.. गौर किया किया जाए तो बंगाल की राजनीति में शिक्षित, शहरी और सांस्कृतिक तबके का हिंदू वर्ग भी लंबे वक़्त से TMC का समर्थन करता रहा है। लेकिन इस घटना के बाद सवाल यह है कि क्या यह कदम ममता की कोई सीक्रेट रणनीति है या कोई थर्ड फ्रंट के लिए जमीन तैयार हो रही है?
राष्ट्रीय सुरक्षा पर बड़ा संकट ?
विवादित स्थल के पास से गुजरने वाला NH-12, उत्तर बंगाल को दक्षिण बंगाल से जोड़ने वाला मुख्य मार्ग है और भाजपा का दावा है कि यह विवाद आगे बढ़ा तो सड़क परिवहन, सुरक्षा व्यवस्था और सीमा क्षेत्र संवेदनशील हो सकता है क्योंकि यह रास्ता बांग्लादेश सीमा के बेहद करीब है।
ममता बनर्जी की ओर से जवाब
ममता बनर्जी ने अपने बयान में कहा "बंगाल टैगोर, विवेकानंद और नजरुल की धरती है। यहां किसी भी विभाजनकारी राजनीति को जगह नहीं मिलेगी।" हालांकि विपक्ष ने उनके बयान को राजनीतिक बचाव बताया और सवाल पूछा "यदि यह गलत था तो विधायक को केवल निलंबित क्यों किया गया? निष्कासन क्यों नहीं...?"
अब आगे क्या?
- देखा जाए तो भाजपा इस मुद्दे पर बड़े आंदोलन की पूरी तैयारी में है
- मुस्लिम राजनीति में नई पार्टियों की सक्रियता बढ़ रही है
- हाई कोर्ट में आगे भी इस मुद्दे पर सुनवाई होने वाली है
- चुनावी गणित में बड़ा बदलाव हो सकता है
बता दे, मुर्शिदाबाद में बाबरी शैली की मस्जिद की नींव सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं रही बल्कि यह बंगाल की राजनीतिक कहानी का नया अध्याय बन चुकी है। भाजपा, TMC, AIMIM और अन्य दल अब इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द अपनी रणनीति बना रहे हैं। अब आगामी हफ्तों में यह विवाद केवल एक राजनीति नहीं बल्कि समाज, पहचान, और वोटर माइंडसेट को भी प्रभावित करेगा… और संभव है कि बंगाल की किस्मत इसी बहस पर तय हो सकती है।

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