भगवान विष्णु के छठे अवतार और 'अजेय' योद्धा माने जाने वाले भगवान परशुराम का व्यक्तित्व जितना शांत है, उनका क्रोध उतना ही प्रलयंकारी। हाथ में फरसा, कंधे पर धनुष और माथे पर तेज- परशुराम ही इकलौते ऐसे अवतार हैं जो अमर माने जाते हैं और आज भी धरती पर जीवित हैं। लेकिन, उनके जीवन की सबसे हैरान कर देने वाली और रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना वह है, जब उन्होंने अपने पिता के एक आदेश पर अपनी ही सगी मां का सिर धड़ से अलग कर दिया था।सुनने में यह किसी क्रूरता जैसा लगता है, लेकिन इसके पीछे छिपी वजह और परशुराम की बुद्धिमानी आपकी सोच बदल देगी। आइए जानते हैं उस रहस्यमयी कहानी के बारे में।
तपोबल की शक्ति और कच्चा घड़ा
परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका परम तपस्वी थे। माता रेणुका की पवित्रता का आलम यह था कि वे नदी से जल लाने के लिए आग में पके हुए नहीं, बल्कि कच्ची मिट्टी के घड़े का इस्तेमाल करती थीं। उनके सतीत्व और तपोबल की शक्ति ऐसी थी कि कच्ची मिट्टी का घड़ा भी पानी में नहीं गलता था।
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वह एक पल जिसने सब बदल दिया
एक सुबह जब माता रेणुका नदी किनारे गईं, तो वहां गंधर्वराज चित्ररथ को अपनी अप्सराओं के साथ विहार करते देख उनका मन क्षण भर के लिए विचलित हो गया। बस, इसी एक पल के 'मानसिक भटकाव' ने उनसे उनकी सिद्धियां छीन लीं। उस दिन कच्चा घड़ा पानी में गलने लगा और तैयार नहीं हुआ। जब वे काफी देर बाद खाली हाथ आश्रम पहुंचीं, तो महर्षि जमदग्नि ने अपनी दिव्य दृष्टि से सब देख लिया। उनका क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया।
जब भाइयों के हाथ कांप गए
महर्षि ने इसे मर्यादा का उल्लंघन माना और अपने पुत्रों को आदेश दिया- "अपनी माता का वध कर दो!" एक-एक करके परशुराम के चारों बड़े भाइयों के हाथ कांप गए। उन्होंने अपनी मां पर शस्त्र उठाने से मना कर दिया। पिता ने आज्ञा की अवहेलना देख उन्हें पत्थर जैसा (जड़) हो जाने का श्राप दे दिया।
परशुराम का भयानक फैसला
अंत में बारी आई सबसे छोटे पुत्र परशुराम की। पिता का आदेश सुनते ही परशुराम ने एक पल भी नहीं गंवाया। उन्होंने अपना भयानक फरसा उठाया और अपनी ही माता का सिर धड़ से अलग कर दिया। पूरा आश्रम सन्न रह गया। लेकिन, परशुराम जानते थे कि उनके पिता के पास मृत्यु को भी मात देने की शक्ति है।
वरदान में मांगी मां की जिंदगी
पुत्र की इस अटूट पितृभक्ति को देख महर्षि का क्रोध शांत हुआ। उन्होंने कहा, "पुत्र! जो चाहो वरदान मांग लो।" परशुराम ने बड़ी चतुराई से कहा- "पिताजी, मेरी मां को फिर से जीवित कर दें, मेरे भाइयों को चेतना दें और मां को यह याद न रहे कि मैंने उन पर वार किया था।" ऋषि ने अभिमंत्रित जल छिड़का और माता रेणुका ऐसे उठ खड़ी हुईं जैसे गहरी नींद से जागी हों।
श्रीमद्भागवत पुराण: स्कंद 9, अध्याय 16 (श्लोक 5-8) में इस घटना का विस्तार से उल्लेख है। पद्म पुराण: इस पुराण में भी भगवान परशुराम के चरित्र और इस घटना का वर्णन मिलता है। भगवान परशुराम ने यह सिद्ध किया कि कभी-कभी धर्म के कठिन मार्ग पर चलने के लिए बड़े बलिदान देने पड़ते हैं, लेकिन अगर मन में सच्चाई और ईश्वर पर विश्वास हो, तो अनर्थ भी मंगल में बदल जाता है।

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