एक बार की मेहनत और बरसों का लाभ,सहजन की खेती से ऐसे कमाएं लाखों

एक बार की मेहनत और बरसों का लाभ,सहजन की खेती से ऐसे कमाएं लाखों

भारत में सहजन की खेती केवल एक सब्जी के उत्पादन तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि यह एक लाभकारी व्यावसायिक मॉडल बन चुका है। अपनी कम रखरखाव लागत और उच्च पोषण मूल्य के कारण इसे ‘चमत्कारी पौधा’ कहा जाता है। सच्ची खेती के विशेषज्ञों के अनुसार, सहजन की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह विपरीत परिस्थितियों, जैसे कम पानी और कम उपजाऊ मिट्टी में भी आसानी से पनप सकता है। इसकी पत्तियां, फूल और फलियां—सभी बाजार में ऊंचे दामों पर बिकते हैं, जिससे किसानों को विविध प्रकार की आय प्राप्त होती है।

उपयुक्त मिट्टी और उन्नत किस्मों का चयन

सहजन की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छे जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। जलभराव वाले क्षेत्रों में इसकी खेती से बचना चाहिए क्योंकि इसकी जड़ें बहुत संवेदनशील होती हैं। किस्मों की बात करें तो आजकल हाइब्रिड किस्मों का बोलबाला है। इनमें पीकेएम-1 (PKM-1) और पीकेएम-2 (PKM-2) जैसी किस्में प्रमुख हैं, जो कम समय में फूलने लगती हैं और फलों की गुणवत्ता भी बेहतरीन होती है। इसके अलावा, दक्षिण भारत में विकसित कुछ किस्में साल में दो बार भरपूर पैदावार देने के लिए जानी जाती हैं।

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बुवाई की तकनीक और पौध प्रबंधन

सहजन को बीज और टहनी (कलम) दोनों तरीकों से लगाया जा सकता है। व्यावसायिक खेती के लिए बीजों द्वारा नर्सरी तैयार करना या सीधे खेत में बुवाई करना अधिक लाभदायक रहता है। पौधों के बीच की दूरी इस बात पर निर्भर करती है कि आप केवल फलियां चाहते हैं या पत्तियों का उत्पादन करना चाहते हैं। सामान्यतः 2.5 x 2.5 मीटर की दूरी पर पौधे लगाना फलियों के उत्पादन के लिए आदर्श माना जाता है। रोपण के शुरुआती 2-3 महीनों में पौधों की विशेष देखभाल जरूरी होती है, जिसमें समय पर निराई-गुड़ाई और हल्की सिंचाई शामिल है। एक बार पौधा स्थापित हो जाने के बाद, इसे बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है।

प्रूनिंग (कटाई-छंटाई): अधिक पैदावार का रहस्य

सहजन की खेती में ‘प्रूनिंग’ एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। जब पौधा लगभग 3 फीट की ऊंचाई तक पहुंच जाए, तो इसके ऊपरी हिस्से को काट देना चाहिए। ऐसा करने से पौधा ऊपर की ओर बढ़ने के बजाय चारों तरफ फैलता है और अधिक शाखाएं विकसित होती हैं। जितनी अधिक शाखाएं होंगी, उतने ही अधिक फूल और फलियां लगेंगी। हर साल फल लेने के बाद पौधों की छंटाई करने से वे घने बने रहते हैं और फलियों की तुड़ाई करना भी आसान हो जाता है।







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