माओवादी हिंसकों के पास 31 जनवरी तक ही समर्पण का विकल्प

माओवादी हिंसकों के पास 31 जनवरी तक ही समर्पण का विकल्प

रायपुर : माओवादी हिंसा उन्मूलन के लिए नए साल में सरकार और कड़ा रुख अपनाने जा रही है। केंद्र और राज्य सरकार ने जनवरी, फरवरी और मार्च के लिए रणनीति तय की है। इसके तहत माओवादियों को 31 जनवरी 2026 तक ही समर्पण का विकल्प मिलेगा और वे पुनर्वास योजना का लाभ ले सकेंगे।

माओवादी हिंसा उन्मूलन के लिए नए साल में बदलेगी रणनीति

समर्पित मओवादियों को आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति-2025 के तहत नकद प्रोत्साहन, प्रशिक्षण, नौकरी व स्वरोजगार के लिए सब्सिडी और आवास की सुविधा दी जा रही है।

सुरक्षा तंत्र से जुड़े राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि फरवरी से माओवादियों के लिए चल रही आत्मसमर्पण की नीति समाप्त कर दी जाएगी। इसके बाद सुरक्षा बलों द्वारा माओवादियों के ठिकानों में घुसकर उन्हें चारों ओर से घेरने और निर्णायक कार्रवाई करने की रणनीति पर अमल किया जाएगा।

सुरक्षा बलों ने माओवादियों के सबसे सुरक्षित गढ़ को ध्वस्त किया था

बीजापुर जिले की कर्रेगुट्टा पहाड़ी पर जिस तरह सुरक्षा बल के जवानों ने माओवादियों के सबसे सुरक्षित गढ़ को ध्वस्त किया था, ठीक उसी तरह अन्य ठिकानों को भी ध्वस्त किया जाएगा। इसके लिए राज्य से लगे पड़ोसी राज्यों से सुरक्षा बलों की मदद ली जाएगी।

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जरूरत पड़ने पर ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बलों को भी बस्तर में उतारा जा सकता है। इस व्यापक अभियान को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच सहमति बन चुकी है। बता दें कि मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश को माओवादी हिंसा से मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह ने संकल्प लिया है।

'छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं को नहीं मारना चाहते थे माओवादी'

झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर माओवादी हमले को 12 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन हाल के दिनों में भाजपा और कांग्रेस नेताओं के बीच बयानबाजी के बाद यह मामला सुर्खियों में है।

17 अक्टूबर को समर्पण करने वाले पूर्व माओवादी केंद्रीय समिति सदस्य रूपेश उर्फ सतीश ने दावा किया कि झीरम हमला किसी राजनीतिक साजिश के तहत सुनियोजित नहीं था। यह टीसीओसी (टैक्टिकल काउंटर आफेंसिव कैंपेन) के तहत पुलिस बल को निशाना बनाने की योजना थी, लेकिन दुर्भाग्यवश इसकी चपेट में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा आ गई।

माओवादियों ने कवासी लखमा को छोड़ दिया गया था

रूपेश ने बताया कि स्थानीय पहचान के कारण कवासी लखमा को छोड़ दिया गया था। लखमा वर्तमान में कांग्रेस से विधायक हैं। बता दें कि 25 मई 2013 को माओवादियों ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा, नंद कुमारपटेल व विद्याचरण शुक्ल सहित 30 से अधिक लोगों की हत्या कर दी थी।

उन्होंने कहा कि भाकपा (माओवादी) की पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति की बैठकों में इस हमले को संगठन की बड़ी रणनीतिक भूल के रूप में स्वीकार किया गया था। पार्टी ने इस संबंध में पत्र जारी कर सार्वजनिक रूप से अपनी गलती भी मानी थी।

 माओवादी आंदोलन सीमित दायरे में सिमट गया

रूपेश ने कहा कि माओवादी आंदोलन सीमित दायरे में सिमट गया और जनता का भरोसा धीरे-धीरे टूटता चला गया। बस्तर में ईसाई मिशनरियों द्वारा बड़े पैमाने पर मतांतरण के बावजूद माओवादियों की चुप्पी के सवाल परउन्होंने कहा कि इससे हमें नुकसान ही हुआ, क्योंकि लोग चर्च से जुड़ जाते हैं और संगठन में नहीं आते हैं।

शव पर हथियार लेकर नृत्य करना था गलत

कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा के शव पर हथियार लेकर नृत्य करने को लेकर रूपेश ने कहा कि मैं भी इसे व्यक्तिगत रूप से बहुत गलत मानता हूं। शीर्ष माओवादी देवजी के अब तक समर्पण नहीं करने पर कहा कि वह केंद्रीय पोलित ब्यूरो सदस्य है। वह मानता है कि संघर्ष को मरने नहीं देना है, भले ही हम मर जाएं।







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