रायगढ़: सहकारी समितियों में धान की फर्जी खरीदी को रोकने के लिए कोशिशें पर्याप्त नहीं होतीं। सरकार धान खरीदी में दो स्तरों पर नुकसान झेलती है। समिति स्तर पर जितना गबन होता है, उससे ज्यादा कमी तो संग्रहण केंद्रों में हो जाती है। वर्ष 24-25 में दोनों संग्रहण केंद्रों में 28 हजार क्विं. धान की कमी हुई लेकिन किसी ने सवाल नहीं किया। इस बार की धान खरीदी से पहले पिछले साल हुए घोटाले और गबन सुर्खियों में थे। समितियों में फर्जी खरीदी और बाहरी धान की आवक को रोकने के लिए कई स्तरों पर अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन संग्रहण केंद्रों को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं है। इस बार लोहरसिंग, खरसिया और कोंड़ातराई में से किन्हीं दो को फिर से उपयोग में लाया जाएगा। पिछले साल समितियों में खरीदे गए धान का निराकरण करने में नाकाम रहा प्रशासन, संग्रहण केंद्रों में भी हालात संभाल नहीं पाया।
मार्कफेड ने धान का सुरक्षित रखने के लिए लाखों रुपए हमाली, परिवहन भाड़ा देकर धान की ढुलाई करवाई थी। 3100 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदा गया धान जब संग्रहण केंद्रों में लाया गया तो समिति स्तर से एक किलो भी सूखत मान्य नहीं किया गया। धान की भरपाई प्रबंधकों से नकद और धान दोनों तरह से करवाई गई। खरसिया में 1,59,186 क्विं. और लोहरसिंग में 7,71,245 क्विं. धान भंडारित करवाया गया। नीलामी और डीओ से धान उठाने के बाद खरसिया संग्रहण केंद्र में 5315 क्विं. धान की कमी पाई गई है। मतलब इतना धान गायब हो गया। इसी तरह लोहरसिंग केंद्र में अभी तक 22,732 क्विं. का शॉर्टेज आया। दोनों केंद्रों में शॉर्टेज हुए धान की कीमत करीब 8.69 करोड़ होता है। इसमें हमाली, परिवहन भाड़ा, रखरखाव आदि जोडऩे पर नौ करोड़ से अधिक का नुकसान है।
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तीन समितियों में हुआ गबन
वर्ष 24-25 में जिले के तीन उपार्जन केंद्रों में घोटाला सामने आया था। तिउर में 9030 क्विं., टेंडा नवापारा में 7163 क्विं. और तमनार में 4993 क्विं. धान की कमी पाई गई। बिना धान लाए सॉफ्टवेयर में चढ़ा दिया गया था। इसका भुगतान भी हासिल कर लिया गया। तीनों केंद्रों को मिलाकर 21,386 क्विं. धान का गबन हुआ जो संग्रहण केंद्रों से कम है। लेकिन मार्कफेड व्यक्ति विशेष के गबन की राशि समिति के खाते से वसूल रही है जो उस संस्था के सभी किसानों का है।

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