अंतिम सिंचाई के बाद सरसों के खेतों में एनपीके (0:52:34) के साथ बोरॉन का मिश्रण डालने से दानों का भराव तेजी से होता है और दाने आकार में बड़े व भारी बनते हैं. यह संयोजन फूल-फली झड़ने की समस्या कम करता है, तेल की मात्रा बढ़ाता है और पौधों को आवश्यक पोषक तत्व समय पर उपलब्ध कराता है, जिससे उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में स्पष्ट सुधार देखने को मिलता है.
जनवरी की शीतलहर सरसों के फूलों को नुकसान पहुंचाती है. पाले से बचाव के लिए खेत के चारों ओर उत्तर-पश्चिम दिशा में धुआं करें. इसके अलावा, 0.1% गंधक अम्ल का छिड़काव करने से पौधों के आंतरिक तापमान में बढ़ोतरी होती है, जिससे फसल ठंड से सुरक्षित रहती है.
सरसों एक तिलहनी फसल है, जिसमें तेल की मात्रा बढ़ाने के लिए सल्फर जरूरी है. अंतिम सिंचाई के समय या छिड़काव के माध्यम से सल्फर देने से दानों में तेल का प्रतिशत 3-4% तक बढ़ जाता है. यह तत्व दानों को सुडौल और चमकदार बनाने में भी मदद करता है.
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सरसों में फूल आने के बाद जब फलियां बनने लगें, तब नमी का विशेष ध्यान रखें. जनवरी में आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करें. ध्यान रहे कि इस अवस्था में जलभराव नहीं होना चाहिए, अन्यथा जड़ें कमजोर हो सकती हैं. नमी बरकरार रहने से दाना पूरी तरह भरता है और वजन बढ़ता है.
इस समय चेपा और सफेद रस्ट का प्रकोप बढ़ सकता है. यदि पत्तियों या फूलों पर चिपचिपा पदार्थ दिखे, तो विशेषज्ञों की सलाह पर इमिडाक्लोप्रिड जैसी दवाओं का छिड़काव करें. समय रहते कीट नियंत्रण न करने से पैदावार में 25-30% तक की कमी आ सकती है.
अच्छी बालियों और दानों के लिए एनपीके (0:52:34) और बोरॉन का मिश्रण उपयोगी होता है. बोरॉन न केवल परागण में सुधार करता है, बल्कि फलियों को फटने से भी रोकता है. इसका प्रयोग करने से दाने मोटे होते हैं और तेल की गुणवत्ता में सुधार होता है.
खेत को खरपतवार मुक्त रखें ताकि मुख्य फसल को पूरा पोषण मिल सके. पीली पड़ रही निचली पत्तियों को हटा देना चाहिए ताकि हवा का संचार बेहतर हो और फफूंद जनित रोगों का खतरा कम हो जाए. खेत की मेड़ों को साफ रखने से कीटों के छिपने की जगह खत्म हो जाती है.

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