खालिदा जिया की मौत पर क्या बोलीं शेख हसीना? कभी दोस्त थीं, फिर बनीं दुश्मन

खालिदा जिया की मौत पर क्या बोलीं शेख हसीना? कभी दोस्त थीं, फिर बनीं दुश्मन

बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री रहीं खालिदा जिया के निधन के बाद देश में शोक का माहौल है. वहां की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस के साथ साथ उनकी राजनीतिक प्रतिद्वंदी रहीं शेख हसीना ने भी उनकी मृत्यु पर शोक जाहिर किया है.बांग्लादेश की राजनीति में दोनों ही महिलाएं कई दशकों तक धुरी रही हैं. बांग्लादेश ने उनकी दोस्ती और फिर दुश्मनी भी देखी. आज इनमें से एक के इस दुनिया से विदा होने के बाद दूसरे ने उनके योगदान को सराहा है.

खालिदा जिया की मौत पर क्या बोलीं शेख हसीना?

शेख हसीना ने बेगम खालिदा जिया के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा है - 'मैं बीएनपी अध्यक्ष और बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया के निधन पर अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त करती हूं. बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में और लोकतंत्र की स्थापना के संघर्ष में उनकी भूमिका के लिए देश के प्रति उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है और हमेशा याद रखा जाएगा. उनका निधन बांग्लादेश के राजनीतिक जीवन और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेतृत्व के लिए एक अपूरणीय क्षति है. मैं बेगम खालिदा जिया की आत्मा की शांति और मगफिरत के लिए प्रार्थना करती हूं. मैं उनके पुत्र तारिक रहमान और शोकाकुल परिवार के सदस्यों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदनाएं व्यक्त करती हूं. साथ ही, पूरे बीएनपी परिवार के प्रति भी अपनी सहानुभूति प्रकट करती हूं, मैं आशा करती हूं कि सर्वशक्तिमान अल्लाह उन्हें इस कठिन समय को सहन करने के लिए धैर्य, शक्ति और संबल प्रदान करें.

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कभी दोस्त थीं, फिर बनीं दुश्मन

आज भले ही दोनों को एक-दूसरे का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता हो, लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब शेख हसीना और खालिदा जिया कंधे से कंधा मिलाकर सड़कों पर उतरी थीं. वह दौर था सैन्य तानाशाह मोहम्मद इरशाद के खिलाफ संघर्ष का. इरशाद के शासन के खिलाफ लोकतंत्र की लड़ाई में दोनों बेगमें एक साझा मंच पर थीं. उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि यही दो महिलाएं आगे चलकर बांग्लादेश की राजनीति को दो ध्रुवों में बांट देंगी. इरशाद के पतन के बाद सत्ता का सवाल आया और यहीं से दोस्ती दुश्मनी में बदल गई.

सत्ता ने रिश्तों को निगल लिया

1991 में खालिदा जिया पहली बार प्रधानमंत्री बनीं. उनके शासनकाल में शेख हसीना की अवामी लीग ने उन पर राजनीतिक बदले की कार्रवाई करने के आरोप लगाए. सत्ता बदली तो आरोप भी पलट गए. जब शेख हसीना सत्ता में आईं, तो बीएनपी ने कहा कि अब उनके नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है. धीरे-धीरे बांग्लादेश की राजनीति लोकतांत्रिक बहस से हटकर व्यक्तिगत दुश्मनी में बदल गई. संसद, सड़क और अदालत, हर जगह टकराव दिखने लगा. यह राजनीति अब नीतियों से ज्यादा व्यक्तियों के इर्द-गिर्द घूमने लगी.

त्रासदी से दोनों पहुंचीं राजनीति में

दोनों बेगमों की राजनीति की जड़ में निजी त्रासदियां हैं. शेख हसीना ने अपने पिता शेख मुजीबुर रहमान को खोया, वह नेता जिन्हें बांग्लादेश का राष्ट्रपिता कहा जाता है. 1975 की उस रात में उनका पूरा परिवार खत्म कर दिया गया और हसीना निर्वासन की पीड़ा लेकर राजनीति में लौटीं. खालिदा जिया ने भी अपने पति जिया उर रहमान को एक सैन्य विद्रोह में खोया. सत्ता की ऊंचाइयों से अचानक अकेलेपन तक का यह सफर उन्हें राजनीति में खींच लाया. इन दोनों महिलाओं के लिए राजनीति सिर्फ सत्ता नहीं, बल्कि न्याय और बदले का माध्यम भी बन गई.

समय बदला लेकिन प्रतिशोध का चक्र चलता रहा. खालिदा जिया जेल गईं, उनके बेटे विदेश में रहे और बीएनपी कमजोर हुई. शेख हसीना सत्ता में मजबूत होती गईं, लेकिन अब तस्वीर फिर बदल रही है. हसीना देश से बाहर हैं और उनकी वापसी अनिश्चित है. वहीं खालिदा जिया की पार्टी एक बार फिर सत्ता की ओर बढ़ रही है.







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