भारत में भगवान शिव के कई ऐसे मंदिर हैं जिनसे जुड़ी कहानियां और मान्यताएं हर किसी को अंचभित कर देती हैं। आदियोगी भगवान शिव का चरित्र जितना रहस्यमयी है उतने ही रहस्य उनके मंदिरों में भी आपको देखने को मिलते हैं। भगवान शिव के इन्हीं चमत्कारी मंदिरों में से एक ही हिमाचल के कुल्लु में स्थिति बिजली महादेव मंदिर। यहां शिवलिंग पर बिजली गिरती है और यह शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है। हालांकि, टूटने के कुछ दिनों के बाद रहस्यमयी तरीके से ये अपने पूर्व रूप में भी आ जाता है। इस मंदिर से जुड़ी कथा और मान्यताओं के बारे में आज हम आपको जानकारी देने वाले हैं।
बिजली महादेव मंदिर
बिजली महादेव मंदिर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के काशवरी गांव के पास है। माना जाता है कि हिमाचल की खूबसूरत पहाड़ियों में यह मंदिर प्राचीन काल से स्थित है। इस मंदिर के पास ही ब्यास और पार्वती नदी का संगम स्थल भी है। इस मंदिर से जुड़ी कहानी और मान्यताएं बेहद रोचक हैं।
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बिजली महादेव मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
माना जाता है कि कुल्लु जिले की जिस पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है वो कुलंत नामक राक्षस के शरीर से बना है। कुलंत के नाम से ही कुल्लु का नाम भी पड़ा है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय धरती पर कुलंत नाम का एक राक्षस हुआ करता था। कुलंत अत्यंत शक्तिशाली था। वह अपने बल का प्रयोग करके ब्यास नदी के प्रवाह को रोकना चाहता था और पूरी घाटी को जल में डुबोना चाहता था। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कुलंत ने अजगर का रूप धारण कर लिया, और जल के प्रवाह को रोकने की कोशिश करने लगा। उसकी इच्छा थी की धरती पर मौजूद प्रत्येक जीवन पानी में डूब जाए। जब भगवान शिव को कुलंत के इस हट के बारे में पता चला तो वो उससे क्रोधित हो गए।
शिव जी ने किया कुलंत का अंत
भोलेनाथ ने कुलंत को समझाने का प्रयास किया लेकिन उसने अपना हट नहीं छोड़ा। भगवान शिव के समझाने के बाद भी जब कुलंत नहीं माना तो उसकी पूंछ पर आग लगाकर शिवजी ने उसका अंत कर दिया। माना जाता है कि विशालकाय कुलंत के मृत शरीर से ही उस पहाड़ की रचना हुई जिसपर आज बिजली महादेव का मंदिर स्थिति है।
भगवान शिव ने दिया इंद्र को आदेश
कुलंत को हराने के बाद भगवान शिव इंद्र के पास पहुंचे। शिव जी ने इंद्र को आदेश दिया की हर 12 साल में वह कुलंत के शरीर से बने पहाड़ पर बिजली के झटके मारें। हालांकि भगवान शिव यह नहीं चाहते थे कि बिजली गिरने के कारण उनके भक्तों को कष्ट हो, इसलिए भगवान शिव ने बिजली का प्रहार स्वयं सहने का निर्णय लिया। कुलंत के शरीर पर बने पहाड़ पर एक शिवलिंग के रूप में शिव जी अवतरित हो गए। माना जाता है कि आज भी हर 12 साल में एक बार इस शिवलिंग पर बिजली गिरती है और यह शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है।
बिजली के प्रहार के बाद ऐसे जुड़ जाता है शिवलिंग
हर 12 वर्ष के बाद जब शिवलिंग पर बिजली गिरती है और यह टूट जाता है। इसके बाद मंदिर के पूजारी इन टुकड़ों को एकत्रित करते हैं और मक्खन, नमक और सत्तू का लेप बनाकर इन टुकड़ों को जोड़ते हैं। चमत्कारी रूप से कुछ ही दिनों के बाद यह शिवलिंग अपने पुराने स्वरूप में लौटने लगता है। इस चमत्कार को देखकर हर कोई हैरान रह जाता है।
कब जाएं बिजली महादेव मंदिर
बिजली महादेव के दर्शन करने के लिए यूं तो साल भर भक्त जाते हैं। लेकिन इस मंदिर की यात्रा के लिए अप्रैल से जून और सितंबर से नवंबर के महीने सबसे अनुकूल माने जाते हैं। सर्दियों में यहां बर्फबारी होती है जिसके कारण भक्तों का यहां तक पहुंचना संभव नहीं होता। इस मंदिर में जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ जाता है भोलेनाथ उसकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।
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