हमारे देश में देवी मां की भक्ति को सबसे पवित्र और शक्तिशाली माना जाता है। खासतौर पर जब बात शक्तिपीठों की होती है, तो हर भक्त चाहता है कि वह अपने जीवन काल में एक बार इन पावन स्थलों के दर्शन जरूर करे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इन शक्तिपीठों के दर्शन करने से भक्तों को मां सती की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। वैसे तो 51 शक्तिपीठ माने जाते हैं, लेकिन तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। आपने भी इन तीर्थ स्थलों के बारे में जरूर सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये शक्तिपीठ कहां-कहां स्थित हैं और इन शक्तिपीठ के अस्तित्व में आने के पीछे क्या वजह है? अगर नहीं, तो आइए आपको बताते हैं देवी के इन 52 शक्तिपीठों के बारे में। तो चलिए शुरू करते हैं…
माता दुर्गा के शक्तिपीठ बनने की पौराणिक कथा
शक्तिपीठों के बनने की कहानी भगवान शिव और माता सती से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के मुताबिक, माता सती भगवान शिव की पहली पत्नी थीं। उन्होंने अपने पिता राजा दक्ष की इच्छा के विरुद्ध शिव जी से विवाह किया था। एक बार राजा दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ करवाया, लेकिन उसमें न तो शिव जी को बुलाया गया और न ही माता सती को। माता सती अपने पति का अपमान सह नहीं सकीं और बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गईं। वहां जब उन्होंने अपने पिता को भगवान शिव के लिए अपशब्द कहते सुना तो उन्हें गुस्सा आ गया और उन्होंने खुद को यज्ञ की अग्नि में समर्पित कर दिया।
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जब भगवान शिव को यह बात पता चली तो वे बहुत दुखी हो गए। वे माता सती के शरीर को लेकर तांडव करने लगे। उनकी तांडव से पूरे ब्रह्मांड में तबाही मचने लगी। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती जी के शरीर को टुकड़ों में बांट दिया, जिससे अलग-अलग जगहों पर उनके अंग और आभूषण गिरे। जहां-जहां उनके शरीर के टुकड़े गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ बने। ये शक्तिपीठ आज भी देवी की महानता, शक्ति और भक्तों की श्रद्धा का केंद्र हैं।
देवी मां के 52 शक्तिपीठों की पूरी लिस्ट (52 Devi Shakti Peeth List)
मणिकर्णिका घाट, वाराणसी
वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर माता की मणिकर्णिका यानी कान के झुमके गिरे थे। यहां विशालाक्षी और मणिकर्णी देवी की पूजा होती है।
माता ललिता देवी शक्तिपीठ
प्रयागराज में ललिता देवी शक्तिपीठ है, जहां माता की अंगुली गिरी थी।
रामगिरी शक्तिपीठ
चित्रकूट के रामगिरी में माता का दायां स्तन गिरा था। यहां देवी शिवानी देवी के रूप में पूजी जाती हैं।
कात्यायनी शक्तिपीठ
वृंदावन में कात्यायनी या उमा शक्तिपीठ है, जहां माता के बाल और चूड़ामणि गिरे थे।
देवी पाटन मंदिर
बलरामपुर के देवी पाटन मंदिर में माता का स्कंध गिरा था, यहां वे मातेश्वरी के रूप में पूजी जाती हैं।
हरसिद्धि देवी शक्तिपीठ
उज्जैन में हरसिद्धि देवी शक्तिपीठ है, जहां माता सती की कोहनी गिरी थी। यह रूद्र सागर तालाब के पश्चिमी तट पर स्थित है।
शोणदेव नर्मता शक्तिपीठ
मध्यप्रदेश के अमरकंटक में शोणदेव नर्मता शक्तिपीठ है, जहां माता का नितंब गिरा था। यह स्थान नर्मदा नदी के उद्गम स्थल के पास है।
नैना देवी मंदिर
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में शिवालिक पर्वत पर नैना देवी मंदिर है, जहां माता की आंख गिरी थी।
ज्वाला जी शक्तिपीठ
हिमाचल के कांगड़ा में ज्वालाजी शक्तिपीठ है, जहां माता की जीभ गिरी थी, इसलिए वहां सदियों से अग्नि प्रकट होती है, जिसे देवी की शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
त्रिपुरमालिनी माता शक्तिपीठ
पंजाब के जालंधर में त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ है, जहां माता का बायां स्तन गिरा था।
पहलगांव शक्तीपीठ
अमरनाथ के पहलगांव, कश्मीर में माता सती का गला गिरा था। यहां महामाया की पूजा होती है।
सावित्री शक्तिपीठ
हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता के पैर की एड़ी और दायां टखना गिरा था, जहां माता सावित्री और भद्रकाली के रूप में पूजी जाती हैं।
मणिबंध शक्तिपीठ
अजमेर के पुष्कर में गायत्री पर्वत पर माता सती की दो पहुंचियां गिरी थीं। यहां माता के गायत्री स्वरूप की पूजा की जाती है।
बिरात शक्तिपीठ
राजस्थान में बिरात शक्तिपीठ है, जहां माता की बाएं पैर की उंगलियां गिरी थीं।
अंबाजी शक्तिपीठ
गुजरात के अंबाजी मंदिर में माता का हृदय गिरा था।
चंद्रभागा शक्तिपीठ
गुजरात के जूनागढ़ में उनका देवी सती का आमाशय गिरा था।
भ्रामरी शक्तिपीठ
महाराष्ट्र में जनस्थान शक्तिपीठ है, जहां माता की ठोड़ी गिरी थी और वे भ्रामरी देवी के रूप में पूजी जाती हैं।
माताबाढ़ी पर्वत शिखर शक्तिपीठ
त्रिपुरा में त्रिपुरसुंदरी शक्तिपीठ है, जहां माता का दायां पैर गिरा था।
कपालिनी शक्तिपीठ
कपालिनी शक्तिपीठ बंगाल में है। तामलुक के विभाष स्थान पर माता की बायीं एड़ी गिरी थी।
देवी कुमारी शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल में कई प्रसिद्ध शक्तिपीठ स्थित हैं। हुगली जिले के रत्नावली में माता सती का दायां कंधा गिरा था, यहां माता को देवी कुमारी कहा जाता है।
विमला शक्तिपीठ
वहीं मुर्शिदाबाद के किरीटकोण गांव में देवी का मुकुट गिरा था, जहां माता विमला की पूजा होती है।
त्रिस्रोता भ्रामरी शक्तिपीठ
जलपाइगुड़ी के सालबाड़ी गांव में माता का बायां पैर गिरा था, यहां माता भ्रामरी देवी के रूप में पूजी जाती हैं।
बहुला देवी शक्तिपीठ
यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में स्थित है। यहां माता का बायां हाथ गिरा था, जिसे बहुला देवी शक्तिपीठ कहते हैं।
मंगल चंडिका माता शक्तिपीठ
यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के उज्जयिनी में है। यहां माता की दायीं कलाई गिरी थी, जहां मंगल चंद्रिका की पूजा होती है।
महिषमर्दिनी शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के वक्रेश्वर में भ्रूमध्य गिरा था, वहां माता महिषमर्दिनी कहलाती हैं।
नलहाटी शक्तिपीठ
यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम के नलहाटी में स्थित है, जहां माता के पैर की हड्डी गिरी थी।
फुल्लारा देवी शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के अट्टहास में माता सती के होंठ गिरे थे, जहां माता फुल्लारा देवी के नाम से जानी जाती हैं।
नंदीपुर शक्तिपीठ
नंदीपुर में माता का हार गिरा था, यहां मां नंदनी की पूजा की जाती है।
युगाधा शक्तिपीठ
वर्धमान जिले के ही क्षीरग्राम में माता का दायें हाथ का अंगूठा गिरा था, जहां देवी को युगाधा या जुगाड्या कहा जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कालीघाट में दाएं पैर की अंगूठी गिरी थी, वहां माता कालिका के रूप में पूजी जाती हैं।
कांची देवगर्भ शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के कांची में देवी की अस्थि गिरी थीं। यहां माता देवगर्भ रूप में स्थापित हैं।
शुचि शक्तिपीठ
तमिलनाडु में कन्याकुमारी के पास शुचि तीर्थम मंदिर है, जहां माता की ऊपरी दाढ़ गिरी थी और उन्हें नारायणी कहा जाता है।
भद्रकाली शक्तिपीठ
यह शक्तिपीठ तमिल नाडु में स्थित है, जहां माता की पीठ गिरी थी। यहां मां को श्रवणी नाम से पूजा जाता है।
सर्वशैल रामहेंद्री शक्तिपीठ
यह शक्तिपीठ आंध्र प्रदेश में स्थित है, जहां माता के गाल गिरे थे।
श्रीशैलम शक्तिपीठ
यह शक्तिपीठ भी आंध्र प्रदेश में स्थित है, जहां माता के दाएं पैर की पायल गिरी थी।
कर्नाट शक्तिपीठ
कर्नाटक में माता के दोनों कान गिरे थे, वहां उन्हें जय दुर्गा के रूप में जाना जाता है।
कामाख्या शक्तपीठ
यह शक्तपीठ प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। असम के गुवाहाटी में नीलाचल पर्वत पर स्थित प्रसिद्ध कामाख्या शक्तिपीठ है, जहां माता की योनि गिरी थी। यहां माता को कामाख्या के रूप में पूजा जाता है।
उड़ीसा का पवित्र शक्तिपीठ
उड़ीसा के उत्कल क्षेत्र में माता की नाभि गिरी थी। यहां माता को विमला देवी के नाम से जाना जाता है और यह स्थल श्री जगन्नाथ मंदिर परिसर में स्थित है।
बांग्लादेश के शक्तिपीठ
बांग्लादेश में भी कई शक्तिपीठ हैं। चिटगांव के चंद्रनाथ पर्वत पर माता की दायीं भुजा गिरी थी, जिसे चट्टल भवानी पीठ कहते हैं। शिकारपुर के पास माता की नासिका गिरी थी, जहां सुगंधा या उग्रतारा देवी पूजी जाती हैं। जयंतिया परगना में बाईं जांघ, सिलहट में गला, और यशोर में बाईं हथेली गिरी थी। ये सभी शक्तिपीठ वहां के स्थानीय देवी रूपों से जुड़े हैं।
नेपाल और तिब्बत के शक्तिपीठ
नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर के पास बागमती नदी किनारे गुह्येश्वरी शक्तिपीठ है, जहां माता के दोनों घुटने गिरे थे। यहां माता को महामाया या महाशिरा कहा जाता है। गंडक नदी के पास आद्या शक्तिपीठ में माता का बायां गाल गिरा था। नेपाल के ही बिजयपुर गांव में माता के दांत गिरे थे, जिसे दंतकाली शक्तिपीठ कहा जाता है।
मनसा शक्तिपीठ
तिब्बत के मानसरोवर क्षेत्र में माता की दायीं हथेली गिरी थी, यहां उन्हें दाक्षायणी कहा जाता है।
मिथिला शक्तिपीठ
मिथिला क्षेत्र, जो भारत और नेपाल की सीमा पर है, वहां माता का बायां कंधा गिरा था। यहां देवी उम की पूजा होती है।
हिंगुला शक्तिपीठ
पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिंगुला शक्तिपीठ स्थित है, जहां माता का सिर गिरा था और उन्हें हिंगलाज देवी कहा जाता है।
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