छत्तीसगढ़ सरकार की नक्सलवाद के बाद अब पत्थलगड़ी ने बढ़ाई चिंता

छत्तीसगढ़ सरकार की नक्सलवाद के बाद अब पत्थलगड़ी ने बढ़ाई चिंता

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर में अब एक नई हलचल देखी जा रही है. यहां पत्थलगड़ी की शुरुआत ठीक वैसे ही हुई जैसे कुछ साल पहले सरगुजा, झारखंड के आदिवासी इलाकों में हुआ था.अब बस्तर के बास्तनार, दरभा और तोकापाल जैसे इलाकों में गांवों की सीमाओं पर बड़े-बड़े पत्थरों पर ग्रामसभा के अधिकार दर्ज कर गाड़े जा रहे हैं. ये पत्थर केवल चिन्ह नहीं हैं बल्कि ये स्थानीय लोगों की चेतावनी हैं, उनके हक की घोषणा हैं, और एक सीधा संदेश हैं कि अब कोई भी फैसला उनकी मर्जी के बिना नहीं लिया जा सकेगा.

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इन इलाकों के लोग पेसा कानून का हवाला दे रहे हैं. यह कानून जो पांचवीं अनुसूची के तहत आता है, आदिवासी क्षेत्रों को विशेष अधिकार देता है. इसके तहत ग्रामसभा को सर्वोच्च इकाई माना गया है. ग्रामवासी दावा कर रहे हैं कि उनकी ग्रामसभा किसी भी सरकार के नियम-कानून से बाध्य नहीं है, और कोई भी सरकारी या निजी योजना उनके क्षेत्र में बिना ग्रामसभा की सहमति के लागू नहीं की जा सकती.

यह पहली बार नहीं है जब छत्तीसगढ़ में पत्थलगड़ी जैसे स्वरूप सामने आए हों. मई 2018 में जशपुर जिले के एक गांव में जब लोगों ने पत्थलगढ़ी की, तो वहां पुलिस को बंधक तक बना लिया गया था. उस घटना ने प्रदेश और केंद्र सरकार दोनों को सोचने पर मजबूर कर दिया था.

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बीजेपी सरकार ने किया नजरअंदाज: दीपक बैज

अब एक बार फिर वही लहर बस्तर में दिख रही है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने साफ कहा है कि यह छठवीं अनुसूची का क्षेत्र है. कांग्रेस ने पेसा कानून लागू किया, लेकिन भाजपा सरकार ने इसे पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया. अब बस्तर की जनता अपने अधिकारों, अपने खनिज संसाधनों और अपनी जमीन को बचाने के लिए लड़ रही है.

सीएम और बीजेपी अध्यक्ष क्या बोले?

वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जनता को भाजपा सरकार पर भरोसा है. मुख्यमंत्री आज खुद बस्तर पहुंचे हैं. चर्चा होगी और समस्या का समाधान निकलेगा. मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने भी अपनी बात रखते हुए कहा कि संविधान की व्यवस्था सबसे ऊपर है. हमें इसकी जानकारी मिली है और इस पर बातचीत की जाएगी. हर चीज संविधान के तहत होगी.

आगे क्या होगा?

अब सवाल यह है कि बस्तर की इस नई करवट का भविष्य क्या होगा? क्या यह आंदोलन सरकारी तंत्र के साथ टकराव की ओर बढ़ेगा या संवैधानिक बातचीत से इसका हल निकलेगा? फिलहाल, बस्तर के गांवों में लगे ये पत्थर एक गहरी चेतावनी हैं कि आदिवासी अब चुप नहीं बैठेंगे.

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