नाबालिग के साथ रेप के मामले में दोषी एक शख्श की सज़ा को सुप्रीम कोर्ट ने माफ कर दिया. एपेक्स कोर्ट ने कहा कि क़ानून की नज़र में भले ही यह अपराध हो लेकिन इस केस में लड़की ने कभी इसे अपराध की तरह देखा नहीं.उसे इसके चलते सामाजिक दबाव और कानूनी प्रकिया के चलते काफी मुश्किलें झेलनी पड़ी हैं. यही नहीं, बालिग हो चुकी लड़की आरोपी से शादी कर चुकी है और फिलहाल अपनी ज़िंदगी मे खुश हैं.
'केस के तथ्य आंख खोल देने वाले'
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने आर्टिकल 142 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आरोपी को सज़ा न देने का फैसला लिया. कोर्ट ने कहा कि इस केस के तथ्य आंख खोल देने वाले है. यह हमारे क़ानूनी सिस्टम की कमियों को दर्शाता है. इस केस में समाज ने लड़की को 'जज' किया.उसके घरवालों ने उसे अकेला छोड़ दिया. उसे अपने प्रेमी को बेगुनाह साबित करने के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी.
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कोर्ट ने कहा कि लड़की आरोपी के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ी है.उसके साथ शादी कर चुकी है और उनका एक बच्चा भी है. इन सब परिस्थितियों के मद्देनजर हम आर्टिकल 142 के तहत सज़ा न देने का फैसला ले रहे है.
मामला क्या था
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला दरअसल कलकत्ता हाई कोर्ट की फैसले में की गई विवादित टिप्पणियों के चलते पहुंचा था. कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस केस में नाबालिग लड़की के साथ रेप के दोषी 25 साल के व्यक्ति को बरी करते हुए कहा था कि लड़कियों को अपनी सेक्स की इच्छा नियंत्रण में रखनी चाहिए. हाई कोर्ट ने किशोरवय लड़के और लड़कियों के लिए कई दिशानिर्देश भी तय किया.
20 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए निचली अदालत के दोषी ठहराए जाने के फैसले को बरकरार रखा. निचली अदालत ने पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 6 और आईपीसी 376(3) और 376(2) के तहत दोषी माना था और 20 साल की सज़ा दी थी.
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हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने दोषी ठहराए जाने के फैसले को बरकार रखा पर सज़ा कितनी दी जाए, इस पहलू पर फैसला पेंडिंग रखा था. कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को कमेटी बनाने को कहा था. इसी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने आज दोषी को सज़ा न देने का फैसला लिया.
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