क्या आपने कभी दुनिया की सबसे छोटी गाय के बारे में सुना है? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं पुंगनूर गाय की, जो अपने छोटे कद, उच्च पोषण वाले दूध और कम रख-रखाव की आवश्यकताओं के लिए आजकल काफी चर्चा में है। भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के चित्तूर जिले के पुंगनूर क्षेत्र की मूल निवासी यह गाय, अब सिर्फ एक पशु नहीं, बल्कि एक धरोहर बन चुकी है, जिसे लोग बड़े चाव से पालना पसंद कर रहे हैं।
ये भी पढ़े : छत्तीसगढ़िया अस्मिता से खिलवाड़ आखिर कब तक?
वैदिक काल में मिलने वाली पुंगनूर गाय की विशेषता
पुंगनूर गाय का इतिहास काफी पुराना है, जो वैदिक काल से जुड़ा हुआ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वैदिक काल में होती थी असली पुंगनूर गाय, जो अपनी अनूठी विशेषताओं के लिए पूजनीय थी। ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि ये गायें इतनी विशिष्ट थीं कि विशिष्ट और विश्वामित्र ऋषि के समय में पैदा होती थी। इनकी दिव्यता और औषधीय गुणों के कारण इन्हें विशेष महत्व दिया जाता था। उस समय इन्हें धन और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता था। आज भी कई मंदिरों, जैसे तिरुपति तिरुमाला मंदिर में, देवताओं को चढ़ाई जाने वाली घी और अन्य उत्पादों के लिए पुंगनूर गाय के दूध का उपयोग किया जाता है, जो इसकी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता को दर्शाता है।
पुंगनूर गाय की विशेषता
पुंगनूर गाय दुनिया की सबसे छोटी गायों में से एक है। इसकी औसत ऊंचाई 70 से 90 सेंटीमीटर होती है और वजन लगभग 115 से 200 किलोग्राम के बीच होता है। यह इसे छोटे खेतों और सीमित जगह वाले किसानों के लिए एक आदर्श विकल्प बनाती है। इसकी मुख्य पुंगनूर गाय की विशेषताएं इसे अन्य नस्लों से अलग बनाती हैं:
ये भी पढ़े : सावन में 16 सोमवार का व्रत कैसे शुरू करें? यहां जानें सारी डिटेल
क्यों बढ़ रही है पुंगनूर गाय की लोकप्रियता?
आजकल लोग कई कारणों से पुंगनूर गाय पालना पसंद कर रहे हैं: इसका उच्च गुणवत्ता वाला दूध और कम रख-रखाव लागत इसे छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाती है। कम भोजन और पानी की आवश्यकता के कारण, यह पर्यावरण पर कम दबाव डालती है, जिससे यह टिकाऊ खेती के लिए उपयुक्त है। कई लोग इसे पवित्र और शुभ मानते हैं, जिससे घरों में इसे पालने का चलन बढ़ रहा है। इसके दूध के औषधीय गुणों के कारण, लोग इसे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद मानते हैं और इसका उपयोग घी, दही और अन्य डेयरी उत्पाद बनाने में करते हैं।
Comments