त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से कालसर्प दोष होता है दूर,माँ गंगा से है गहरा नाता...पढ़ें पौराणिक कथा

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से कालसर्प दोष होता है दूर,माँ गंगा से है गहरा नाता...पढ़ें पौराणिक कथा

वैदिक पंचांग के अनुसार, 11 जुलाई से सावन के महीने की शुरुआत हो रही है। इस माह को महादेव की कृपा प्राप्त करने के लिए शुभ माना जाता है। सावन में शिव मंदिरों को बेहद सुंदर तरीके से सजाया जाता है और रोजाना शिव भक्त विधिपूर्वक महादेव का अभिषेक करते हैं और मंदिरों में भक्त शिव जी के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं।

अगर आप इस सावन में किसी मंदिर जाने का प्लान बना रहे हैं, तो त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर जरूर जाएं। सावन सोमवार के दिन त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करना शुभ माना जाता है। इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने से काल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं इस मंदिर के बारे में।

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कहां है त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग?
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग  महाराष्ट्र के नासिक से 30 किलोमीटर दूर स्थित है। मंदिर के गर्भगृह तीन छोटे-छोटे ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में देखा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में पूजा करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। महादेव भक्त के सभी कष्टों को दूर करते हैं।

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा 
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक बार ब्रह्मगिरी पर्वत पर एक आश्रम में महर्षि गौतम और उनकी पत्नी वास करते थे। कई ऋषि-मुनि उनके प्रति ईर्ष्या का भाव रखते थे। ऋषि-मुनि ने महर्षि गौतम को आश्रम से बाहर निकालने का फैसला लिया और महर्षि गौतम पर गौहत्या का आरोप लगाया। इस पाप से छुटकारा पाने के लिए गौतम ऋषि ने भूलोक पर मां गंगा को लाने के लिए शिवलिंग को विराजमान कर तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या से महादेव प्रसन्न हुए और उन्होंने महर्षि गौतम से कोई वर मांगने के लिए कहा।

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इस दौरान महर्षि गौतम ने शिव जी से मां गंगा को इस स्थान पर प्रकट होने के लिए कहा। वहीं, देवी गंगा ने शर्त रखी की अगर महादेव इस जगह पर वास करेंगे, तभी मैं भी यहां रहूंगी। इसलिए भगवान शिव ने त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का रूप धारण किया और वह यहीं पर बस गए। इसके बाद गंगा नदी गोदावरी के रूप में बहने लगीं। इस गौतमी नदी के नाम से भी जाना जाता है।









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