आज यानी 12 अगस्त को भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि है। इस तिथि पर हर साल कजरी तीज व्रत किया जाता है। इस दिन कुंवारी लड़कियां और सुहागिन महिलाएं व्रत करती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को करने से मनचाहा वर मिलता है और पति को लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है। ऐसे में आइए जानते हैं आज के शुभ योग, राहुकाल समय समेत आदि जानकारी के बारे में।
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तिथि: कृष्ण तृतीया
मास पूर्णिमांत: भाद्रपद
दिन: मंगलवार
संवत्: 2082
तिथि: तृतीया प्रातः 08 बजकर 40 मिनट तक
योग: सुकर्मा सायं 06 बजकर 54 मिनट तक
करण: विष्टि प्रातः 08 बजकर 40 मिनट तक
करण: बव रात्रि 07 बजकर 39 मिनट तक
सूर्योदय और सूर्यास्त का समय
सूर्योदय: सुबह 05 बजकर 49 मिनट पर
सूर्यास्त: शाम 07 बजकर 03 मिनट पर
चंद्रमा का उदय: रात 08 बजकर 59 मिनट पर
चन्द्रास्त: सुबह 08 बजकर 38 मिनट पर
सूर्य राशि: कर्क
चंद्र राशि: कुंभ
पक्ष: कृष्ण
शुभ समय अवधि
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 52 मिनट तक
अमृत काल: सुबह 04 बजकर 14 से प्रातः 05 बजकर 46 मिनट तक
अशुभ समय अवधि
राहुकाल: शाम 03 बजकर 45 मिनट से शाम 05 बजकर 24 मिनट तक
गुलिक काल: दोपहर 12 बजकर 26 मिनट से दोपहर 02 बजकर 05 मिनट तक
यमगण्ड: सुबह 09 बजकर 07 मिनट से सुबह 10 बजकर 47 मिनट तक
आज का नक्षत्र
आज भी पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में रहेंगे…
पूर्वभाद्रपद नक्षत्र: प्रात: 11 बजकर 52 मिनट तक
सामान्य विशेषताएं: क्रोधी, स्थिर मन, अनुशासनप्रिय, आक्रामक, गंभीर व्यक्तित्व, उदार, मिलनसार, दानशील, ईमानदार, कानून का पालन करने वाले, अहंकारी और बुद्धिमान
नक्षत्र स्वामी: केतु
राशि स्वामी: बृहस्पति
देवता: निरति (विनाश की देवी)
प्रतीक: पेड़ की जड़े
कजरी तीज का महत्व
कजरी तीज, भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत मुख्यतः विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए रखा जाता है, वहीं कुंवारी कन्याएं अच्छे जीवनसाथी की कामना से यह उपवास करती हैं। सावन (श्रावण) की हरियाली के बाद भाद्रपद की यह तीज स्त्री-हृदय की अंतर्ध्वनि है जहां विरह, प्रतीक्षा और समर्पण एक गहरे भाव में मिलते हैं।
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इसमें ना केवल शरीर, बल्कि आत्मा भी उपवास करती है अपने प्रेम, अपने विश्वास और अपने स्त्रीत्व को शुद्ध और जाग्रत करने के लिए। इस दिन महिलाएं नीम, तुलसी या आम की डालियों से झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और रात्रि में चांद को देखकर व्रत खोलती हैं। "कजरी" लोकगीतों में छिपा होता है नारी का दर्द, उसकी प्रार्थना और उसकी प्रतीक्षा।
पूजा-विधि
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