गांवों की मिट्टी में अब एक नई सुगंध है. वह ताइवान कटहल की है. जी हां वह फल जिसे कभी देहातों में गरीबों का फल कहा जाता था, आज उसकी उन्नत किस्म ‘ताइवान कटहल’ किसानों की आमदनी और पहचान दोनों का प्रतीक बनती जा रही है. उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक, भारत के कई राज्य इस कटहल की खेती को एक बागवानी क्रांति के रूप में देख देखा जा रहा है.
बिहार के समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी जैसे जिलों में पिछले कुछ वर्षों में कई किसानों ने पारंपरिक खेती छोड़ ताइवान कटहल की तरफ रुख किया है. इसका कारण कम लागत, सरकारी सब्सिडी, बीमा सुरक्षा, प्रोसेसिंग यूनिट से जुड़ाव और बाजार में बढ़ती मांग है. कभी अपने बड़े आकार और स्वादिष्ट फल के कारण चर्चित रहने वाला ताइवान कटहल अब बिहार सहित पूरे देश में किसानों के लिए एक नये अवसर की तरह सामने आ रहा है.
इसकी खेती से जहां अच्छी आमदनी हो रही है, वहीं सरकार की योजनाओं से किसानों को सब्सिडी और फसल बीमा का भी लाभ मिल रहा है.
आइए जानते हैं क्या है ताइवान कटहल?
ताइवान कटहल, सामान्य भारतीय कटहल की तुलना में एक उन्नत, विदेशी और ज्यादा लाभकारी किस्म है. यह किस्म ताइवान में विकसित की गई थी और अब भारत में इसके ग्राफ्टेड पौधे उपलब्ध हैं.
मुख्य विशेषताएं:
खेती की जानकारी: खेत से मंडी तक की बात
1. जलवायु और मिट्टी की उपयुक्तता
जलवायु: ताइवान कटहल को उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी सफलता मिलती है. सालाना 25°C से 35°C तापमान इसकी वृद्धि के लिए अनुकूल होता है.
बारिश: सालाना 1000–1500 मिमी बारिश पर्याप्त होती है, लेकिन जलनिकासी जरूरी है.
मिट्टी: अच्छी जलनिकासी वाली, गहरी, दोमट (loamy) या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है. pH मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए. जलजमाव वाली मिट्टी से बचें.
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2. जमीन की तैयारी और रोपाई का समय
जमीन की तैयारी:
गड्ढे की तैयारी:
रोपाई का समय:
मॉनसून की शुरुआत (जून-जुलाई) सबसे उपयुक्त समय है.
3. प्रजाति और पौधे की दूरी
प्रजाति: ताइवान कटहल की हाईब्रिड किस्में जैसे ‘Taiwan Pink’, ‘Taiwan Red’, या ‘TJF-1’ अधिक उत्पादन देती हैं. ये किस्में जल्दी फल देती हैं, 3 से 4 साल में अच्छा उत्पादन देना प्रारंभ कर देती है.
पौधों की दूरी:
4. सिंचाई व्यवस्था
5. खाद और उर्वरक प्रबंधन
उम्र गोबर की खाद यूरिया डीएपी पोटाश
पहले साल 10–15 kg 200g 150g 100g
दूसरे साल 20 kg 400g 300g 200g
तीसरे साल 25 kg 600g 400g 300g
चौथे साल से 30–40 kg 800g 500g 400g
खाद को 2 भागों में बाँट कर – एक भाग जून में और दूसरा भाग सितंबर में दें.
साथ ही जैविक खाद और नीमखली का भी प्रयोग करें.
6. रोग और कीट नियंत्रण
सामान्य कीट: फल बेधक कीट, तना छेदक, पत्ती मरोड़ने वाले कीट.
रोग: फफूंदजनित रोग, एन्थ्रेकनोज (Anthracnose), फलों का गलना.
उपाय: ट्राइकोडर्मा और बाविस्टीन जैसे जैविक फफूंदनाशकों का प्रयोग करें.
नीम का तेल (5 ml/L पानी) का छिड़काव करें.
रोगग्रस्त शाखाओं को काटकर जला दें.
7. फूल और फल आने का समय
फूल आने का समय: पौध रोपने के 2.5 से 3 साल बाद फूल आना शुरू होता है.
फल आने का समय: फूल आने के 4-5 महीने बाद फल तैयार होता है.
एक पौधा: 4-5 साल बाद 40–50 किलो तक फल दे सकता है, और 7-8 साल में 100 किलो से अधिक उत्पादन संभव है.
8. फसल की कटाई और पैकिंग
कटाई का समय: फल हल्का पीला और खुशबूदार हो जाए तब काटें.
वजन: एक फल का वजन 8–15 किलो तक होता है.
कटाई विधि: छुरी से काटें, फिर डंठल को काट कर साफ करें.
पैकिंग: फलों को छायादार स्थान में रखें. बांस की टोकरियों या गत्ते के डिब्बों में पैक करें.
ढुलाई: ध्यान रखें कि फल दबे नहीं, वरना जल्दी खराब हो सकते हैं.
9. बाजार और आमदनी की संभावनाएं
मांग: ताइवान कटहल की बाजार में बहुत ज्यादा मांग है – खासकर बड़े शहरों, प्रोसेसिंग यूनिट्स और निर्यात के लिए.
प्रति फल कीमत: ₹100 से ₹300 प्रति फल (आकार, स्वाद और मौसम पर निर्भर).
एक एकड़ आमदनी:
कटाई: जब फल हल्का पीला और सुगंधित हो जाए
पैकिंग: बांस की टोकरियों या गत्ते के डिब्बों में
बाजार, मूल्य और आमदनी
ताइवान कटहल का उपयोग केवल फल के रूप में नहीं, बल्कि चिप्स, जैम, जैली, मिठाई, रेडी-टू-कुक पैक, और निर्यात में भी हो रहा है. बाजार में इसकी कीमत ₹100–₹300 प्रति फल या ₹20–₹30 प्रति किलो तक जाती है.
एक अनुमानित आमदनी मॉडल
राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM):
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): फसल क्षति पर ₹50,000 तक मुआवजा केवल 5% प्रीमियम किसान को देना होता है
प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग योजना (PMFME): प्रोसेसिंग यूनिट लगाने पर 35% तक सब्सिडी किसानों को बाजार से जोड़ने में मदद करती है.
निष्कर्ष: एक फल जो बदल सकता है खेती की तस्वीर
ताइवान कटहल की खेती अब सिर्फ एक फल उगाने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक बहुस्तरीय ग्रामीण व्यवसाय बन चुकी है—जहाँ किसान खेती से कमाई, प्रोसेसिंग से वैल्यू एडिशन, और सरकारी योजनाओं से सुरक्षा हासिल कर रहे हैं. अगर सही मार्गदर्शन और मार्केटिंग नेटवर्क मिल जाए, तो ताइवान कटहल भविष्य में बिहार और भारत की बागवानी क्रांति का नायक साबित हो सकता है.
सुझाव: इच्छुक किसान अपने जिला बागवानी पदाधिकारी से संपर्क करें या कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से ताइवान कटहल की तकनीकी जानकारी प्राप्त करें.
कम जमीन में अधिक आमदनी
ताइवान कटहल की किस्में जैसे ‘TJF-1’ और ‘Taiwan Red’ 3–4 वर्षों में फल देना शुरू कर देती हैं. एक फल का वजन 10–15 किलो तक होता है, जिसकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है.
एक एकड़ में लगभग 60 पौधे लगाए जा सकते हैं और 5वें वर्ष से ही ₹1 लाख तक की आमदनी संभव हो जाती है.
सरकारी सब्सिडी ने दी खेती को गति
केंद्र सरकार के राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) के तहत ताइवान कटहल जैसे फलों की खेती पर पौधरोपण, सिंचाई और जैविक खाद पर सब्सिडी दी जा रही है.
इस योजना का लाभ लेकर समस्तीपुर, दरभंगा और मधुबनी के कई किसानों ने व्यावसायिक स्तर पर कटहल की बागवानी शुरू कर दी है.
फसल बीमा ने घटाया जोखिम
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत अब फलों की फसलें भी बीमा के दायरे में आने लगी हैं. ताइवान कटहल की फसल को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान पर ₹50,000 तक मुआवजा मिल सकता है.
बीमा के लिए किसानों को केवल 5% प्रीमियम देना होता है, जबकि बाकी राशि सरकार देती है. इससे छोटे और सीमांत किसानों के लिए जोखिम कम हुआ है.
प्रोसेसिंग और बाजार में बढ़ रही मांग
कटहल का उपयोग सिर्फ फल के रूप में ही नहीं, बल्कि कटहल चिप्स, जैम, जैली और रेडी-टू-कुक उत्पादों के लिए भी हो रहा है. प्रधानमंत्री फूड प्रोसेसिंग योजना (PMFME) के तहत किसानों को 35% तक की सब्सिडी देकर मिनी प्रोसेसिंग यूनिट लगाने में सहायता मिल रही है. इससे बाजार में मूल्य संवर्धन (Value Addition) भी हो रहा है.
स्थानीय किसान भी हो रहे प्रेरित
समस्तीपुर के मोहम्मदपुर गांव के किसान संजय कुमार कहते हैं, “मैंने पिछले साल 1 एकड़ में ताइवान कटहल लगाया है. कृषि विभाग से पौधे और ड्रिप सिंचाई पर सब्सिडी मिली. अगर फसल ठीक रही तो अगले साल आमदनी 1.5 लाख तक होने की उम्मीद है.” ताइवान कटहल की खेती अब सिर्फ एक फल नहीं, बल्कि एक व्यवसायिक संभावना बन चुकी है. सरकारी योजनाएं अगर सही तरीके से किसानों तक पहुंचे तो यह बागवानी क्षेत्र में क्रांति ला सकती है. खासतौर पर बीमा और सब्सिडी का लाभ उठाकर किसान कम जोखिम में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.



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