पूर्व जज मार्कंडेय काटजू के महिला वकीलों पर बयान से मचा बवाल,जिन महिला वकीलों ने मुझे आंख मारी, उन्हें...

पूर्व जज मार्कंडेय काटजू के महिला वकीलों पर बयान से मचा बवाल,जिन महिला वकीलों ने मुझे आंख मारी, उन्हें...

पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश मार्कण्डेय कट्जू एक बार फिर विवादों में हैं। इस बार मामला उनकी उस टिप्पणी का है जिसमें उन्होंने एक महिला वकील को सलाह दी कि वह अदालत में न्यायाधीश को आंख मारकर फैसला अपने पक्ष में करा सकती है।

कट्जू (जिन्होंने 2006 से 2011 तक सुप्रीम कोर्ट में सेवाएं दीं और बाद में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे) ने यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर की। दरअसल, एक महिला वकील ने उनसे किसी मामले में सुझाव मांगा था। इसके जवाब में कट्जू ने लिखा - "कोर्ट में जिन महिला वकीलों ने मुझे आंख मारी, उन्हें हमेशा अनुकूल आदेश मिला।"

हालांकि इसे कट्जू ने मज़ाक के अंदाज़ में लिखा, लेकिन टिप्पणी के लहजे और संदेश को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि क्या इस तरह का कथन न्यायपालिका की गरिमा के अनुरूप है?

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विशेषज्ञों के अनुसार यह टिप्पणी दो बड़े स्तर पर आपत्तिजनक है:

न्यायिक निष्पक्षता पर चोट: जब कोई पूर्व न्यायाधीश यह संकेत दे कि अदालत के फैसले व्यक्तिगत आकर्षण से प्रभावित हो सकते हैं, तो यह न्यायिक संस्थान की साख पर धब्बा है। इस तरह के बयान से युवा महिला वकीलों को यह गलत संदेश जाता है कि काबिलियत से ज्यादा दिखावा काम आता है।

हास्य की आड़ में लैंगिक भेदभाव: कट्जू की टिप्पणी महज़ 'जोक' नहीं है, बल्कि यह पेशेवर महिलाओं को केवल आकर्षण के चश्मे से देखने वाली मानसिकता को उजागर करती है। हास्य के नाम पर ऐसे रूढ़िवादी विचार समाज में लैंगिक असमानता को बढ़ावा देते हैं।

कट्जू ने विवाद बढ़ने के बाद वह पोस्ट हटा दी, लेकिन महिला वकील का संदेश साझा कर अपने बयान को दोहराया। इस पर लोगों ने और नाराज़गी जताई। आलोचकों का कहना है कि यह isolated incident नहीं है। इससे पहले भी कट्जू कई बार महिलाओं को लेकर विवादित बयान दे चुके हैं। कभी उन्होंने बलात्कार को "पुरुषों की स्वाभाविक प्रवृत्ति" बताया, तो कभी कहा कि "अच्छी लड़कियाँ जल्दी सो जाती हैं"। ऐसे बयानों ने उनके दृष्टिकोण पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश भी समाज में एक नैतिक जिम्मेदारी निभाते हैं। उनके शब्दों का असर आम लोगों के साथ-साथ न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर भी पड़ता है। यदि कोई पूर्व जज अदालत को 'आकर्षण' से प्रभावित बताने लगे तो यह पूरे तंत्र की छवि धूमिल करता है।

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इस घटना से यह भी साफ हुआ कि सोशल मीडिया पर सक्रिय सार्वजनिक हस्तियों को शब्दों की मर्यादा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। मज़ाक और असंवेदनशीलता के बीच की पतली रेखा अक्सर नजरअंदाज कर दी जाती है, लेकिन ऐसे बयान पेशेवर महिलाओं के संघर्ष को छोटा कर सकते हैं।








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