इस तरह से करें धान की फसलों की देखभाल,बालियों में भर-भरकर आएंगे दाने और होगी बंपर पैदावार

इस तरह से करें धान की फसलों की देखभाल,बालियों में भर-भरकर आएंगे दाने और होगी बंपर पैदावार

धान की फसल में बाली दिखने लगी है. अब इसमें दानों की कमी ना हो, इसके लिए किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है. ताकि उत्पादन अच्छी हो सके.धान भारत की प्रमुख खाद्य फसल है और किसान बड़े पैमाने पर इसकी खेती करते हैं. झारखंड-बिहार में प्रमुखता से इसकी खेती होती है. धान की अच्छी पैदावार पाने के लिए हर अवस्था पर सही देखभाल जरूरी है. जब धान में बालियां आने लगती हैं, तब यह फसल के जीवन चक्र का सबसे अहम समय होता है. इस अवस्था में पौधों को पर्याप्त पोषण, सिंचाई और कीट-रोग प्रबंधन की सख्त जरूरत होती है.

 यदि किसान इस समय सही तकनीक अपनाएं, तो दाने भरे हुए और मजबूत निकलते हैं, जिससे उत्पादन और गुणवत्ता दोनों बढ़ जाते हैं. इसके लिए खास प्रबंधन की जरूरत है. धान में बालियां आने का समय आ रहा है. उन्होंने कहा कि धान में बालियां निकलते समय खेत में नमी बनाए रखना बेहद आवश्यक है. इस अवस्था में दानों के विकास के लिए पौधों को लगातार पानी की जरूरत होती है. किसान को ध्यान रखना चाहिए कि खेत में हल्की नमी बनी रहे, लेकिन पानी का अधिक जमाव न हो. यदि खेत में जलभराव हो जाए तो जड़ों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिससे पौधों की बढ़वार रुक सकती है और बालियों में दाने अधूरे रह जाते हैं.

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आगे कहा कि खेत में संतुलित सिंचाई और जल निकास की व्यवस्था होना अनिवार्य है. बारिश अधिक होने पर पानी तुरंत निकालें और सूखे की स्थिति में समय पर हल्की सिंचाई करते रहें. ताकि पौधों को पोषण मिलता रहे है.

उन्होंने बताया कि बालियां निकलते समय पौधों को सबसे ज्यादा पोषण की आवश्यकता होती है. इस अवस्था में संतुलित उर्वरक का प्रयोग फसल के लिए लाभकारी है. यूरिया का छिड़काव पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करता है, जिससे पौधे हरे-भरे रहते हैं और दाने भरने में मदद मिलती है.

आगे कहा कि जिंक सल्फेट (33%) का छिड़काव करने से पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं और पत्तियों का पीलापन रुकता है. इसके अलावा पोटाश और फॉस्फोरस का प्रयोग भी जरूरी है क्योंकि यह दानों के विकास और पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं. किसान चाहें तो पौधों की बढ़वार और बालियों में दाने भरने के लिए जिबरेलिक एसिड का भी छिड़काव कर सकते हैं.

धान की बालियां निकलते समय कीट और रोग फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं. इस अवस्था में तना छेदक, गंधी कीट और माहू जैसे कीट फसल को प्रभावित कर सकते हैं. गंधी कीट बालियों का रस चूसकर दानों को अधूरा छोड़ देता है. इससे बचाव के लिए किसान जैविक कीटनाशक जैसे नीम का घोल या अन्य जैविक उपाय कर सकते हैं. आवश्यकता पड़ने पर रासायनिक दवाओं का भी संतुलित प्रयोग कर सकते है.

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उन्होंने कहा कि अगर किसान ऐसे प्रबंधन करते है तो झुलसा रोग और ब्लास्ट रोग भी इस समय आम हो जाते हैं. इन रोगों से बचाव के लिए खेत की नमी पर नियंत्रण और फफूंदनाशक दवाओं का छिड़काव करना चाहिए. समय पर निगरानी और दवा का छिड़काव फसल की रक्षा करता है.









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