रायगढ़ : विजयपुर में शासकीय आवंटन भूमि को टुकड़ों में बेचने वाले मामले में विस्तृत जांच की गई है। रिपोर्ट देखकर अफसर खुद हैरान हैं। यहां 18 लोगों को 18 एकड़ भूमि का आवंटन हुआ था। मजे की बात यह है कि बिना अनुमति के 14 लोगों ने जमीनें बेच दीं। यही नहीं खसरा नंबर 4/6 के टुकड़ों का नामांतरण निरस्त किया गया, उसका आवंटी कोई और है जबकि वर्तमान में किसी और काम नाम है। विजयपुर का मूल खसरा नंबर 4 कई तरह के रहस्य उजागर कर रहा है। शहर से लगी हुई जमीनों पर इतनी मननमानी होती रही और किसी को कुछ नजर नहीं आया। अब तक जितने भी पटवारी पदस्थ रहे, वे जमीनें बिकवाते रहे। यहां सरकारी जमीन खनं 4 में से 18 आदिवासी भूमिहीनों को जीवन-यापन के लिए सरकार ने 1973-74 में एक-एक एकड़ जमीनें दी थी।
1990 से लेकर अब तक इन 18 टुकड़ों के 36 टुकड़े हो चुके हैं। केवल चार ही टुकड़े ऐसे नजर आ रहे हैं, जिस पर मूल आवंटी के वारिसान काबिज हैं। यहां भी भौतिक रूप से किसका कब्जा है, मालूम नहीं। इतने बड़े पैमाने पर सरकारी जमीन बेच दी गई। आदिवासी को आवंटित भूमि को बिना कलेक्टर की अनुमति के नहीं बेचा जा सकता। अभी एक खसरा नंबर पर नामांतरण को निरस्त किया गया है। खसरा नंबर 4/6 रकबा 0.405 हे. में भूमि स्वामी के रूप में प्रमोद भगत पिता शिवनारायण भगत का नाम वापस दर्ज किया गया है। प्रमोद ने सात टुकड़ों में इसे बेच दिया था। खनं 4/23 रकबा 0.0230 हे. मेहत्तर सिदार, 4/24 रकबा 0.0230 हे. कोमल सिंह, 4/25 रकबा 0.0230 हे.
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महेश्वरी सिदार, 4/26 रकबा 0.0190 हे. पदुम लाल परजा (पूर्व पार्षद), 4/27 रकबा 0.0230 हे. तिलकराम सिदार, 4/28 रकबा 0.0220 हे. रश्मि राठिया और 4/29 रकबा 0.2670 हे. सुजाता सिंह को बेचा गया था, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि प्रमोद या उसके किसी पूर्वज को भूमि आवंटित ही नहीं हुई थी। उसने भी बिना अनुमति के जमीन खरीदी थी। खनं 4/6 का आवंटन वागे पिता नंदलाल खडिय़ा को आवंटित था। 1990 में प्रमोद ने इसे खरीदा और आवासीय में डायवर्सन भी करवा लिया। उसको वापस कृषि भूमि में बदलकर टुकड़ों में विक्रय कर दिया। अब जमीन को सरकार के खाते में दर्ज किया जाना है।
नामांतरण निरस्त, एफआईआर दर्ज होना चाहिए
कलेक्टर के आदेश पर एसडीएम रायगढ़ ने विस्तृत जांच करवाई। तहसीलदार शिव कुमार डनसेना ने पुनर्विलोकन में प्रकरण दर्ज कर सात टुकड़ों का पूर्व में किया नामांतरण रद्द कर दिया। पूर्व तहसीलदार और पटवारी केशव प्रसाद राठिया को शोकाज नोटिस भी दिया गया है। पटवारी के विरुद्ध कार्रवाई की अनुशंसा की गई है। फाइल भू-अभिलेख शाखा में पड़ी है।
बाकी 13 मामलों में क्या होगा
सरकार ने बेशकीमती भूमि का आवंटन इसलिए किया था कि गरीब आदिवासी खेती करके जीवन-यापन कर सकें। लेकिन जमीन को भूमाफियाओं ने अपने कब्जे में लेकर खरीदी-बिक्री करवा दी। एक खसरे का नामांतरण निरस्त किया गया है। अब बाकी के 13 टुकड़ों में भी ऐसी ही कार्रवाई होनी है। साथ दोषियों के विरुद्ध सख्त कदम भी उठाया जाना चाहिए। रोड किनारे की यह शासकीय भूमि शासन के काम आ सकती है।
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