धान की खेती अब अंतिम पड़ाव पर है. फसल पकने को तैयार है. करीब 15 दिन बाद धान की कटाई भी शुरू हो जाएगी. लेकिन इस बीच रबी की फसलों की तैयारी भी शुरू होगी. ऐसे में किसानों को समय कम मिलेगा. लेकिन, एक ऐसा तरीका है, जिससे किसान बिना तैयारी के ही रबी की फसलें बो सकते हैं. सुनने में अजीब लगेगा, लेकिन ये सही है. इस विधि को हमारे पूर्वज इस्तेमाल किया करते थे. जानें…
उतेरा क्रॉप क्या है?
उतेरा क्रॉप एक पारंपरिक तरीका है, जिसमें धान की खड़ी फसल में सिर्फ बीज का छिड़काव करना होता है. इसमें धान की फसल के कटाई के करीब 15 दिन पहले इसकी बुवाई की जाती है. इसमें खेत में धान की खड़ी फसल पर दलहनी और तिलहनी फसलों को बोया जा सकता है. पहले जब सिंचाई के साधन नहीं हुआ करते थे, तब किसान धान की नमी का इस्तेमाल रबी की फसलों की बुवाई और अंकुरण के लिए करते थे. ऐसे में धान की कटाई तक उसमें आसानी से अंकुरण आ जाता और वह उग जाती थी. इसे उतेरा क्रॉप कहा जाता है.
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इन फसलों को लगा सकते हैं
कृषि विज्ञान केंद्र बड़गांव के डायरेक्टर धुवार ने बताया कि धान की खड़ी फसलों में आप दलहनी और तिलहनी फसलों की खेती कर सकते हैं. बालाघाट में खास तौर से लखौरी नाम की दाल की खेती इसी पद्धति से होती है. वहीं, इसके अलावा आप तिल, उड़द, मूंग, ग्वार, अलसी सहित कई फसलों का इस्तेमाल कर सकते हैं.
ये पद्धति बढ़ाती उर्वरा शक्ति
उतेरा क्रॉप लगाने से किसान भाई अपने खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ा सकते हैं. दरअसल, धान एक अनाज वाली फसलें है. वहीं, दलहनी फसलों में राइजोबियम पाया जाता है, जो स्वतंत्र नाइट्रोजन का इस्तेमाल करने में मदद करता है. ऐसे में खेत में विविधता आने से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है.
उतेरा क्रॉप यहां ज्यादा उपयोगी
वहीं, इससे फसलों की उत्पादकता में सुधार हो सकता है. मिट्टी का क्षरण कम होता है. यह विधि उन इलाकों में सबसे ज्यादा फायदेमंद है, जहां पर सिंचाई के साधन नहीं है. ऐसे में किसान भाई उतेरा पद्धति अपनाकर फसल उत्पादन कर सकते हैं. और ऐसा करने से खेती में लागत में कमी आएगी और किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी.

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